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श्रीजिनराज सूरि रास
१७५ राउल 'भीम' सभा भली रे लाल, 'जेसलमेर' मझार । सु० । परवादी जीता जियइ रे लाल, पाम्यउ जय-जयकार । सु०॥४॥सो० 'श्री जिनवल्लभ' सांभल्यउ रे लाल, कठिन क्रिया प्रतिपाल । सु० । इण जगि परतखि पेखियइ रे लाल, 'श्रीजिनराज'कृपाल ।सु०॥५॥सो० प्रतिपइ पुण्य पराक्रमइ रे लाल, मानइ सहुको आण । सु० । पिशुन थया सहु पाधरा रे लाल, दूरई तजि अभिमान ।सु०॥६॥सो० मईगल जिम गुरु माल्हतउ रे लाल, मोटा साथि मुणिंद । सु०। जन मन मोहइ चालतां रे लाल, पामइ परमाणंद । सु०॥णा सो०॥ क्रोध तज्यउ काया थकी रे लाल, दूरि कियउ अहङ्कार । सु०। मायानइ मानइ नहीं रे लाल, लोभ न चित्त लिगार । सु०॥८॥ सो०॥ श्री संघ सोभ बधारतउ रे लाल श्रीजिनराज मुनीश । सु०। प्रतिपउ गुरु महिमंडलइ रे लाल, 'सहजकीरति' आशीस ।सुहासो०
॥ इति श्री गच्छाधीश गुरु गीतम् ॥
(४)॥ ढाल, बहिनोनी जाति मांहि ॥ गच्छपति सदा गरुयड़ निलउ, पंच सुमति गुपति दयाल ।
सुविहित शिरोमणि साचिलउ, पंच महाव्रत पाल ।।१।। सद्गुरु वंदियइ, 'श्रीजिनगजसुरिन्द'।
दरशन अधिकआगंद, जंगम सुरतरु कन्द ।। आंकणी संघपति शिरोमणि संघवी, श्री 'आमकरण' महन्त ।
पद उवणउ जिहनउ कियउ, खरची धन बहु भांति ।। २ ।। स०॥
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