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________________ १६८ ऐतिहासिक जैन काव्य-संग्रह मिलियड संघ सुजाण, वाच्या ते फुरमाण । तेडावा (या ? ) 'पतिसाह', सहु को धरइ उच्छाह ॥ ४ ॥ हिव श्री 'जिनसिंघ सूर', साहसवंत सनूर । चिंतइ एम उल्हासइ, जाइवउ 'पति साह' पासइ || ५ || 'बीकानेर' थी चलिया, मनह मनोरथ फलिया । साधु तणइ परिवारइ, 'मेडतइ' नयरि पधारइ ॥ ६ ॥ श्रावक लोक प्रधान, उच्छव हुआ असमान । श्री गच्छनायक आयउ, सिगले आनंद पायउ || ७ | तिहां रह्या मास एक दिन २ घधतइ विवेक । चलिवा उद्यम कीधउ, 'एक - पयाणउ' दीधउ ॥ ८ ॥ काल धरम तिहां भेटइ, लिखत लेख कुण मेटइ | 'श्री जिनसिंघ' गुरुराया, पाछा 'मेडतइ' आया ॥ ६ ॥ सई मुखि लीधड संथारउ, कीधउ सफल जमारो । शुद्ध मनइ गहगहता, 'पहिलइ देवलोक' पहुता ॥ १० ॥ संवत 'सोल चित्तरइ', 'पोषसुदि 'तेरस' वरतइ । सोग करइ सहि लोक, पूज पहुंता परलोक ॥। ११ ॥ हिव देही संसकार, कीधउ लोक आचार । बीजइ दिन धरि प्रेम, लोक विमासइ एम ।। १२ ।। आगम गुणे अगाध, मिलीया बड बड़ा साध । संघ मिल्यउ गजथाट, कुणनइ दीजियइ पाट ॥ १३ ॥ तब बोल्या सही लोग, 'राजसमुद्र' पाट जोग । दीजइ एहनइ पाट, जिम थायइ गहगाट ।। १४ ।। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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