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________________ १३४ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह श्री क्षेमराज उपाध्याय नातं सरसति करि सुपसाउ हो, गाइ सु सुहगुरु राउहो । गाइसु सुह गुरु सफल सुरतरु, गछि खरतर सुहकरो। महियलइ महिमावंत मुणिवर, बालपणि संजम धरो। सिद्धान्त सार विचार सागर, सुगुणमणि वयरागरो। जयवंत श्री उवझाय खेमराज, गाइसु सही ए सुह गुरो ॥१॥ भवियण जण पडि बोहइ हो, छाजहडह कुलि सोहइ हो । छाजहड कुलि अवतरीय सुहगुरू, साह लीला नन्दणो। बर नारि लोलादेवो उयरई, पाप तापह चन्दणो। दिखीया श्री जिनचन्द्रसूरि गुरि, संवत पनर सोलेत्तरइ । सीखविय सुपरइं सोमधज गुरि, भवियण, (जण) संशय हरइ ॥२॥ उपसम रसह भंडारू हे, संजमसिरि उर हारू ए। संजम सिरि उर हार सोहइ, पूरव ऋषि समवडि धरइ । नवतत्त नवरस सरस देसण, मोह माया परिहरइ । जिणआण धरइ हीयडइ, पंच पमाय निवारए । उवझाय श्री खेमराज सुहगुरु, चवद विद्याधारए ॥३॥ कनक भणइ सिरनामी हे, मइ नवनिधि सिद्धि पामी हे । ___पामीय सुहगुरु तणीय सेवा, सयल सिद्धि सुहामणी । चाउले चौक पूरेवि सुहव, वधावउ वर कामिणी। दीपंत दिनमणी समउ तेजइ भबियजण तुम्हि वंदउ । उदिवंता श्री उवझाय खेमराज, 'कनक' भणइ चिरनंदउ ।।४।। गुरु गोतं (वर्द्ध० भ० गुटका से ) १७ वीं सदी लिक - - Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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