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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
(८) चौमासा गीत। श्रावण मास सोहामणो, महियल बरसे मेहो जी। बापीयड़ारे पिउ २ करइ, अम्ह मनि सुगुरू सनेहो जी ।। अम मन सुगुरु सनेह प्रगट्यो, मेदिनी हरयालियां । गुरु जीव जयणा जुगति पालइ, बहइ नीर परणालियां ।। सुध क्षेत्र समकित बीज वावइ, संघ आनंद अति घणो । जिनसिंघ सूरि करउ चउमासउ, श्रावण मास सोहामणो ॥ १ ॥ भलइ आयउ भादवउ, नीर भर्या नीवाणो जी। गुहिर भोर ध्वनि गाजता, सहगुरु करिही बखाणो जो॥ वखाण कल्पसिद्धांत वांचइ, भविय राचइ मोरड़ा। अति सरस देसण सुणी हरषइ, जेम चंद चकोरड़ा ।। गोरडी मंगल गीत गावइ, कंठ कोकिल अभिनवउ । जिनसिंहसूरि मुणिंद गातां, भलै रे आव्यो भादवउ ॥२॥ आसू आस सहु फली, निरमल सरवर नीरो जी। सहगुरु उपशम रस भर्या, सायर जेम गंभीरो जी ।। गंभीर सायर जेम सहगुरु, सकल गुण मणि सोहए। अति रूप सुंदर मुनि पुरंदर, भविय जण मण मोहए ।। गुरु चंद्रनो परि झरइ अमृत, पूजतां पूरइ रली। सेवतां जिनसिंध सूरि सह गुरु, आसू मास आसा फली ॥३॥ काती गुरु चढती कला, प्रतपइ तेज दिणंदो जो। धरतीयइ रे धान नीपनां, जन मनि परमाणंदो जी ।। जन मनि परमाणंद प्रगट्यो, धरम ध्यान थया घणा ॥
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