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________________ ११६ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह आग्रह देखी श्री संघनो, पूज्यजी रह्या चउमास । धर्मनो मार्ग उपदिसइ, इम पहुंतो मननी आश ॥५६॥भ०।। प्रतिमाप्रतिष्टा थापना, दीक्षा दीयइ गुरुराज । इम सफल नर भव तेहनो, जे करइ सुकृत ना काज रे ॥६०भ० राग :-गुड मल्हार आव्यो मास असाढ़ झबूके दामिनी रे । जोवइ २ प्रीयडा वाट सकोमल कामिनी रे ।। चातक मधुरइ सादिकि प्रोऊ २ उचरइ रे । वरसइ घण वरसात सजल सरवर भरइ रे॥६॥ इण अवसरि श्रीपूज्य महा मोटा जतो रे। श्रावक ना सुख हेत आया त्रंबावती रे । जोवउ २ अम गुरु रोति प्रतीति वधइ वलो रे।। ___ दिक्षारमणी साथ रमइ मननी रली रे ॥६१।।आं०॥ संवेग सुधारसनीर सबल सरवर भर्या रे। पंच महाव्रत मित्र संजोगइ संचर्या रे। उपशम पालि उतंग तरंग वैरागना रे । सुमति गुप्ति वर नारि संजोग सौभाग्यना रे ॥६॥ प्रवचन वचन विस्तार अरथ तम्वर घगा रे । कोकिल कामिनी गीत गायइ प्रो गुरु तणा रे। गाजइ २ गगन गंभीर श्री पूज्यनो देशना रे । भवियण मोर चकोर थायइ शुभ वासना रे ॥१३॥ ___ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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