________________
श्री पूज्य वाहण गीतम्
संसार तारण दु कांवली, चउथो व्रत तेह दस्तार रे ।
अखोड आंबिल निम जाणत्री, कल (इ) य वेयावच्चसार रे ||४६ | | ० |
अठम तप ते टोक (प) रां, अठाही ते सेव खजूर रे ।
.i
;
समवसरण तपते मिरी, सोपारी सामायिक लाहिण माल पहिरावणी, उत्तम क्रियाण ते जोइ रे ।
पूर
११५
रे || ५० || ||
परखीय वस्त जे संपड़ी, लाख असंखित होइ रे || ५१ ॥ ५० ॥
श्री गुरु शासण देवता, वाहण ना रखवाल रे ।
भगति भी सानिध करइ, फलइ मनोरथ माल ||२२|| ५० ॥ रागः - केदार गौड़ी
Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only
दिन २ महोत्सव अति घणा, श्रसंघ भगति सुहाइ | मन शुद्धि श्रीगुरु सेवयइ, जिणि सेव्यइ शिवसुख पाइ ||५३|| पू०|| भविक जन वंदौ सहगुरु पाय, श्री खरतर गच्छराय || आं०|| प्रमु पाटिए चवीसमइ, श्रीपूज्य जिनचन्दसूरि ।
उद्योतकारी अभिनवो, उदयो पुन्य अंकूर ॥ ५४ ॥ भ० || -शाह (श्रावक) भंडारी वीरजी, साह राका नइ गुरुराग । वर्द्धमानशाह विनयइ घणो, शाह नागजी अधिक सोभाग || ५५ ||२०|| शाह वछा शाह पदमसो, देवजीने जैतशाह |
श्रावक हरखा (घा) हीरजो, भाणर्जी अधिकउ उच्छाह ||५६ ||०|| भंडारी माडण नइ भगति घणी, शाह जाबडने घणा भाव । शाह मनुआने शाह सहजीया, भंडारी अमीर अधिक अछाह रे || ५७॥ तिमिलइ श्रावक श्राविका, संभलइ पूज्य वखाण ।
हीयड ऊलटइ उलसइ, एम जीव्यो जन्म प्रमाण ||५८ | | ० |
www.jainelibrary.org