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________________ XXII जिनप्रभसूरि परम्परा गुर्वावलीकी मूल प्रति बीकानेर वृहत् ज्ञानभण्डारमें (१५ वीं शताब्दीके पूर्वार्धकी लि०) है। (ई) खरतर-गुरु-गुण-वर्णन-छप्पयकी द्वितीय प्रति, १७ वीं शताब्दी लि० हमारे संग्रहमें है। (उ) पृ० ४३ में मुद्रित खरतरगच्छ पट्टावलोकी मूल प्रति तत्कालीन लि०, पत्र १ हमारे संग्रहमें है। यह पत्र कहीं कहीं उदेइ भक्षित है, अतः कहीं कहीं पाठ त्रुटक था, उसे जिनकृपाचन्द्रसूरि ज्ञानभण्डारस्थ गुटकाकार प्रतिसे पूर्ण किया गया है । हमारे संग्रहका पत्र, सुन्दर और शुद्ध लिखा हुआ है। (ऊ) देवतिलकोपाध्याय चौ०,क्षेमराजगीत; राजसोम, अमृत धर्म क्षमाकल्याण अष्टक-स्तव, जिनरंगसूरि युगप्रधान पद प्राप्ति गीतकी प्रतियें तत्कालीन लि० बीकानेर बृहत् ज्ञानभण्डारमें विद्यमान है। (ए) अकबर प्रतिबोध रासकी प्रति जयचन्द्रजीके भण्डारमें सुरक्षित है। (ऐ) कीर्तिरत्नसूरि गीत नं०२ से है, कृपाचन्द्रसूरि ज्ञान भण्डा रस्थ गुटकाकार प्रतिसे नकल किये गये हैं। (ओ) अन्य प्रेषित प्रतियोंकी नकलें :(a) गुणप्रभसूरि प्रबन्ध, जिनचन्द्रसूरि, जिनसमुद्रसूरि गीत (४२३ से ४३२), जैसलमेरके भण्डारसे नकल कर यतिवर्य लक्ष्मीचन्द्रजोने भेजी है। (b) जिनहंससूरिगीत, समयसुन्दर कृत ३६ रागिणी गर्भित Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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