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XVII उपर्युक्त दोनों बादशाह खिजली वंशका कुतुबुद्दोन मुबारिकशाह और तुगलक वंशका मुहम्मद तुगलक होना चाहिये । जो क्रमशः सन् १३१६ और १३२५ ईस्वीमें गद्दीपर बैठे थे। इसी समयके बीच खिलजी वंशका पतन और तुगलक वंशका उत्थान हुआ था। सूरीश्वरके प्रभावसे दोनों राजवंशोंमें जैन-धर्मकी प्रभावना रही। ___ एक दूसरे गीतमें उल्लेख है कि जिनदत्तसूरिने बादशाह सिकन्दरशाहको अपनी करामात दिखाई और ५०० बन्दियोंको मुक्त कराया (पृ० ५४, पद्य ११ आदि)। ये सम्भवतः बहलोल लोधीके उत्तराधिकारी पुत्र सिकन्दरशाह लोधी थे, जो सन् १४८६ ईस्वीमें दिल्लीके तख्तपर बैठे और जिन्होंने पहले-पहल आगराको राजधानी बनाया।
श्री जिनचंद्रसूरिके दर्शनकी सुप्रसिद्ध मुगल-सम्राट अकबरको बड़ी अभिलाषा हुई। उन्होंने सूरीश्वरको गुजरातसे बड़े आग्रह और सन्मानसे बुलवाया। सूरिजीने आकर उन्हें उपदेश दिया और सम्राट्ने उनकी बड़ी आव-भगत की। (पृ०५८) यह रास संवत् १६२८ में अहमदाबादमें लिखा गया।
बादशाह सलेमशाह 'दरसणिया' दीवानपर बहुत कुपित हो गये थे, तब फिर इन्हीं सूरीश्वरने गुजरातसे आकर बादशाहका क्रोध शान्त कराया और धर्मकी महिमा बढ़ाई। (पृ० ८१-८२) ये सूरीश्वर मुलतान भी गये और वहांके खान मलिकने उनका बड़ा सत्कार किया (पृ०६६, पद्य ४)
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