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है, वे सब ऐतिहासिक हैं। जो घटनायें वर्णन की गयी हैं, वे सत्य हैं और हमारी ऐतिहासिक दृष्टिके भीतरकी हैं। जैन गुरुओं और मुनियोंने समय-समयपर जो धर्म प्रभावना की, राजाओं-महाराजाओं और सम्राटोंपर अपने धर्मकी उत्तमताकी धाक बैठायी और समाजके लिये अनेक धार्मिक अधिकार प्राप्त किये उनके उल्लेख इन गीतोंमें पद-पदपर मिलते हैं। विशेष ध्यान देने योग्य वे उल्लेख हैं. जिनमें मुसलमानी बादशाहोंपर प्रभाव पड़नेकी बात कही गयी है । उदाहरणार्थ
जिनप्रभसूरिके विषयमें कहा गया है कि उन्होंने अश्वपति (असपति) कुतुबुद्दीनके चित्तको प्रसन्न किया था। कुतुबुद्दीनने उनसे जन-शासनके विषयमें अनेक प्रश्न किये थे और फिर सन्तुष्ट होकर सुल्तानने गांव और हाथियोंकी भेंट देकर उनका सम्मान करना चाहा
था, पर सूरिजीने इन्हें स्वीकार नहीं किया । (पृष्ट १२, पद्य ४, ५)। ___ इन्हीं सूरीश्वरने संवत् १३८५ (ईस्वी सन् १३२८ ) की पौष सुदी ८ शनिवारको दिल्लीमें अश्वपति मुहम्मद शाहसे भेंट की थी। सुल्तानने इन्हें अपने समीप आसन दिया और नमस्कार किया। इन्होंने अपने व्याख्यान द्वारा सुल्तानका मन मोह लिया। सुल्तानने भी ग्राम, हाथी, घोड़े व धन तथा यथेच्छ वस्तु देकर सूरीश्वरका सम्मान करना चाहा, पर उन्होंने स्वीकार नहीं किया। सुल्तानने उनको बड़ी भक्ति की, फरमान निकाला और जलूस निकाला तथा 'वसति' निर्माण कराई। (पृ० १३, पद्य २-६) ऐसे ही उल्लेख पृ० १४ पद्य २, व पृ० १६ पद्य ६, ७ में भी हैं।
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