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खरतर गुरु गुण वर्णन छप्पय ताम तिमिर धरि फुरइ जाम दिणयरु नहु उग्गइ ।
तां मचगल मयमत्त जाम कसरीय न लग्गइ । ताम चिडां चिगचिगं जां न सिंचांणउ दुद्युइ।
- तां गजइ घणु गयणि जाम नहु पवण फुरक्का । तिम सयल वादि निय निय घरिहि, तांम गव्य पव्वइ चड़ई ।
जिनभद्र सूरि सुह गुरु तणीय, हथु न जां कन्निहिं पडई ॥३४॥ घर पुर नयर निवासि जेय निय गन्त्र पयासई।
बोलावंता बहुय बिरुद नहु किंपि विमासई। पहुवि पयउ पमाण लखण वर वखाणई।
___ वादि विवाद विनोदि संक निय चित्त न याणई। एरिस जि केवि भुवणिहि भलई, वादी मयंगल गउयडइं।
जिनभद्र सूरि केसरि डरिहिं त धुज्जवि धरणिहिं पड़ई ॥३५।। नाग कुमर नानाह सुरनाहा जेण तिहुयणि जिन्ना ।
तिहुयण सल्लविरुद्दो विव खाउ एस भूवलए १ भूवलयंमि पसिद्ध सिद्ध जो संकरु भणियउ ।
गोरी पयतलि रुलिय सोय इणि वाणिहि हणियउ । दानव मानव असुर मरि हेलइ जो लिद्धउ ।
सो नारायण सोल सहस गोपी वसि किद्धउ । हिव एह अधिक भडि वाउलउ, न मुणिलोयहं कलिहिं ।
जिणभद्रसूरि इणि कारणिहि, मयण मल्लु जित्तउ बलिहिं ॥३६॥
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