SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ ऐतिहासिक जैन-काव्य-संग्रह mm खरतर गुरुगुणा वर्णन छवय सो गुरु सुगुरु जु छविह जीव अप्पण सम जाणइ । सो गुरु सुगुरु जु सच्चरूव सिद्धंत वखाणइ । सो गुरु सुगुरु जु सील धम्म निम्मल परिपालइ । सो गुरु सुगुरु जुदव्व संग विसम सम भणि टालइ । सो वेव सुगुरु जो मूल गुण, उत्तर गुण जइणा करइ । . गुणवंत सुगुरु भो भवियणह, पर तारइ अप्पण तरइ ॥ १॥ धम्म सुधम्म पहाण जत्थ नहु जीव हणिज्जइ। धम्म सुधम्म पहाण जत्थ नहु कूड़ भणिज्जइ । धम्म सुधम्म पहाण जत्थ नहु चोरी किज्जइ । धम्म सुधम्म पहाण जत्थ परत्थी न रमिज्जइ । सो धम्म रम्म जो गुण सहिय, दान सील तव भाव मउ । भो भविय लोय तुम्हि पर करिय, नरभव आलिम नीगमउ ॥२॥ सिरि वद्धमाण तित्थे जुगवर, सोहम्म सामि वंसंमि । सुविहिय चूडामणि मुणिगो, खरतर गुरुणो थुणस्सामि ॥३॥ सिरि उज्जोयण बद्धमाण सिरि सूरि जिणेसर। सिरि जिनचंद-मुणिंद? तिलउ सिरि अभय गणेसर । १ निलउ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy