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________________ २२ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पुहवि पयडु खीमड कुलहि, लखमीधरु सुविचारु । तसु नन्दण आंबउ पवरो, दीण दुहिय साधारु ॥ १३ ॥ तासु धरणि कीकी उयरे, रायहुंसु अवयरिउ । त पदमसूरि कुल कमलु रवे, बहु गुण विद्या भरिउ ॥१४॥ विकम निव संवछरिण, तेरह सइ नऊ एहिं । जिट्ठि मासि सिय छट्टि तहि, सुह दिणि ससिवारेहिं ॥१५।। आदि जिणेसर वर भुवणि, ठविय नन्दि सुविसाल । धय पडाग तोरण कलिय, चउदिसि वंदुरवाल ॥ १६ ।। सिरि तरुणप्पह सूरि वरो, सरसइ कंठाभरणु । सुगुरु वयणि पट्टहि ठविउ, पदमसूरि ति मुणिरयणु ॥१७॥ जुगपहाणु जिणपदम सूरे, नामु ठविउ सुपवित्त । आणंदिय सुर नर रमणि, जय जयकार करंति ॥ १८ ॥ ॥ धत्ता । मिलिउ दसदिसि मिलिउ दस दिसि, संघ अपारू । देराउरि वर नयरि तुर सद्दि गज्जंति अंबरु नच्चंतिय वर रमणि ठामि ठामि पिखणय सुन्दर पय ठवणुछवि जुगवरह विहसिउ मग्गण लोउ जय जय सहु समुछलिउ तिहुअणि हुयउ पमोउ । १६ ।। धन्नु सुवासरु आजु, धन्नु एसु मुहुत्त वरो । अभिनव पुनम चन्दु, महिमंडलि उदयउ सुगुरु ॥ २० ॥ तिहुयणि जय जय कारू, पूरिउ महियलु तूर रवे । घणु वरिसइ वसुधार, नर नारिय अइ विविह परे ॥२१॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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