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श्रोजिनपद्मसूरि पट्टाभिषेक रास
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निरूवम जिणचन्द सूरि, संघ मण वंछिय कारू । उदयउ तसु पट्टि सयल कला, संपत्तु मयंकू ।
सूरि मउड चूडावयंसु, जिण कुशल मुर्णिदु ॥५॥ महि मण्डल विहरन्तु सुपरि, आयउ देराउरि ।
तत्थ विहिय वय गहण माल, पय ठवण विविह परि। निय आऊ पज्जंतु सुगुरु, जिणकुसलु मुणेइ । निय पय सिख समग्ग, सुपरि आयरिह देइ ॥ ६ ॥
॥धत्ता ॥ . जेम दिनमणि जेम दिनमणि, धरणि पयडेय । तव तेय दिप्पंत तेम सूरि मउडु, जिणकुशल गणहरू ।
दढ छंद लखण सहिउ, पाव रोर मिछत्त तम हरू । चन्द गच्छ उज्जोय करु, महि मंडलि मुणि राउ। __ अणुदिणु सो नर नमउ तुम्हि, जो तिहुपति वखाउ ॥ ७ ॥ सिंधु देसि राणु नयरे, कंचण रयण निहाणु ।
तहि रीहडु सावय हुउं, पुनचन्दु चन्द समाणु ॥ ८॥ तसु नंदणु उछव धवलो, विहि संघह संजुत्तु ।
साहु राय हरिपाल वरो, देराउरि संपत्तु ॥६ ।। सिरि तरुणप्पहु आयरिउ, नाण चरण आधारु ।
सु पहुचन्दि पुण विन्नवए, कर जोड़वि हरिपालु ॥१०॥ पय ठवणुछव जुगवरह, काराविसु बहु रंगि।
ताम सुगुरु आइसु दियए, निसुणवि हरिसिउ अंगि ॥११।। कुंकुवत्रिय पाट ठवण, दस दिसि संघ हरेसु।
सयल संघु मिलि आवियउ, छरि करइ पवेसु ।।१२।।
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