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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
५५ ठाणोंसे विचरते हुए मेड़ता पधारे, उनके समक्ष श्रेष्ठिने आकर आलोयणा लेनेकी इच्छा प्रगट करनेपर मुनिवरने गच्छनायकसे आलोयणा लेनेकी राय दी परन्तु आखिर नथमलजीका अत्याग्रह देखकर २१ अष्टम तप और बहुतसे बेले और उपवासोंकी आलोयणा दी। ____ आलोयणाके अनन्तर विशेष वैराग्य वासित होकर अपनी स्त्री नायकदे और भ्राता सुरताणको भी महाव्रत लेनेके लिए उपदेश देकर, दोक्षाका परामर्श किया, सबके साथ२ कर्मचन्द आदिपुत्रोंने भी स्वीकृति दी। सेठने गच्छनायकके मिलनेपर दीक्षा लेना निश्चित किया। ___ इसी अवसरपर लाहोरमें दो चातुर्मास करके विजयसेनसूरि मेड़ता पधारे । नाथू शाह पांचो पुत्रोंके साथ गुरुश्रीको वन्दनार्थ आया। शुभ लक्षणवाले कर्मचन्दको देखकर गच्छनायकने सोचा कि अगर यह चरित्र ले, तो बड़ा विचक्षण होगा। गुरुश्रीने नाथू शाहसे कहा कि अभी हम हीरविजयसूरिजीके दर्शनार्थ जा रहे हैं तुम यथावसर कर्मचन्द्रादिके साथ आ जाना, ऐसा कहकर मेड़तासे सादड़ी, पर्युषणाके पारणेपर राणकपुर, वरकाणा तीर्थकी यात्रा करते हुए जालोर पधारे वहां कमलविजयजीने उन्हें वन्दना की, बीजोवाका संघ भी आया। वहांसे विहारकर श्री विजयसेनसूरि सिरोही होकर पाटण पधारे और हीरविजयसूरिजीका निर्वाण हुआ जानकर वहीं ठहरे। . . __इधर मेड़तेमें कर्मचन्द आदि दीक्षाकी तैयारियां करने लगे, बहुतसे धर्मकृत्योंको करते हुए जेसा और पञ्चायणको गृह भार संभलाकर १ नाथू २ सुरताण ३ कर्मचन्द्र ४ केसा ५ कपूरचन्द्र
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