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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह याचकोंको दान दिया । संघने बड़ी भक्ति की । वहांसे विहारकर करjअई पधारे, वहां संघने भक्तिसे वंदना की। इस प्रकार बिहार करते हुए बीकानेर पधारे, वहां पासाणीने संघके साथ प्रवेशोत्सव किया एवं (मंत्रीश्वर कर्मचन्दके पुत्र ) भागचन्दके पुत्र मनोहरदास आदि सामहीयेमें पधारे।
बीकानेरसे बिहारकर (लूनकरण ) सर चतुर्मास कर जालयसर पधारे । वहां मंत्री भगवन्तदासने बड़े उत्सवके साथ पूज्यश्रीको वंदन किया, वहांसे डीडवाणेके संघको वंदाते हुए सुरपुर एवं मालपुर आये, वहां भी धर्म-ध्यान सविशेष हुआ । इस प्रकार विहार करते हुए बीलाईमें चौमासा किया। वहांके कटारिये श्रावक खरतर गच्छ के अनन्य अनुरागी थे, उन्होंने उत्सव किया।
बीलाड़ेसे बिहार कर मेड़ते आये वहां गोलछा रायमलके पुत्र अमीपालके भ्राता नेतसिंह भ्रातृपुत्र-राजसिंहने बड़े समारोहसे नान्दि स्थापन कर व्रतोच्चारण किये, श्रीफल नालेरादिके साथ रुपयोंकी लाहण ( प्रभावना) को । वहांके रेखाउत श्रीमल, वीरदास मांडण, तेजा, रीहड़ दरड़ाने भी धार्मिक कार्योंमें बहुतसा द्रव्यका सदव्यय किया । आचार्य श्री वहांसे विहारकर राणपुर और कुम्भलमेरके जिनालयोंको वंदन कर मेवाड़ प्रदेश होते हुए उदयपुर पधारे । वहांके राजा करणने आपका सम्मान किया। और मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र पुत्र लक्ष्मीचन्द्रके पुत्र रामचन्द और रुघनाथके साथ अजायबदेने वन्दन किया। वहांसे विहार कर स्वर्णगिरि पधारे, वहां संघने बड़ा उत्सव किया। साचोर संघने एवं हाथीशाहने बहुत आग्रह कर चतुर्मास साचोरमें कराया।
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