________________
काव्योंका ऐतिहासिक सार किये । सम्राट्की विज्ञप्तिके अनुसार बहांसे विहारकर वे मेड़ते पधारे, वहां शारीरिक व्याधि उत्पन्न होनेसे आराधना पूर्वक स्वर्ग सिधारे । __इस प्रकार जिनसिंहसूरिजीकी अचानक मृत्यु होनेसे संघको बड़ा शोक हुआ। पर कालके आगे कर भी क्या सकते थे, आखिर शोक निर्वतन करके संघने राजसी (राज समुद्र) जी को भट्टारक (गच्छ नायक) पद और सिद्धसेन ( सामल ) जीको *आचार्य पदसे अलंकृत किये। ___ संघपति (चोपड़ा) आसकरण, अमीपाल, कपूरचन्द, ऋषभदास
और सूरदासने पद महोत्सव बड़े समारोहसे किया। (पूनमीया गच्छीय)हेमसूरिजीने सूरिमंत्र देकर सं०१६७४ फाल्गुन शुक्ला को शुभ मुहूर्तमें जिनराजसूरि और जिनसागरसूरि नाम स्थापना की। ___आचार्य पद प्राप्तिके अनन्तर आपने मेड़तेसे बिहार कर राणकपुर, वरकाणा, तिमरी ( पार्श्वनाथजीकी), ओसियां और घंधाणीकी यात्राकर चतुर्मास मेड़ते किया। वहांसे जैसलमेर पधारे। वहां राउल कल्याण और श्रीसंघने वंदन किया और भणसाली जीवराजने (प्रवेश) उत्सव किया। वहां श्रीसंघको ११ अंगोंका श्रवण कराया। शाह कुशलेने मिश्री सहित रुपयोंकी लाहण की। वहांसे संघके साथ लोद्रवा पधारे। (भणसाली ) श्रीमल सुत थाहरुशाहने स्वामी-वात्सल्यादिमें प्रचुर द्रव्य व्यय किया। वहांसे आचार्य जिनसागरसूरि फलवधी पधारे । झाबक मानेने प्रवेशोत्सव किया और
* निर्वाण रास गा० ९ और जपकोति कृत गोतके कथनानुसार आपको आचार्य पद, युग प्रधान जिनचन्द्रसूरिजीके वचनानुसार मिला था।
Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org