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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
१७२५ चैत्र कृष्णा ११ को जेतारणमें आपका स्वर्गवास हुआ । इनके पश्चातके पट्टधरोंका क्रम यह है :- १ जिनलब्धि- जिनमाणिक्यजिनचन्द्र - जिनोदय - जिनसंभव - जिनधर्म - जिनचन्द्र - जिनकीर्ति - जिन बुद्धिवल्लभ-जिनक्षमारत्नसूरिके पट्टधर जिनचन्द्रसूरिजी पालीमें अभी विद्यमान हैं।
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भावहर्षीय शाखा भावहर्षजी उपाध्याय ( पृ० १३५ )
शाह कोड़ाकी पत्नी कोड़मदेके आप पुत्र थे । श्रीकुलतिलक के आप सुशिष्य थे । संयमके प्रतिपालनमें आप विशेष सावधान रहा करते थे, और सरस्वती देवीने प्रसन्न होकर आपको शुभाशीष दी थी । माह शुक्ला १० को जैसलमेर में गच्छनायक जिनमाणिक्यसूरिजीने ( सं० १५६३ और १६१२ के मध्य में ) आपको उपाध्याय पद दिया था ।
अन्य साधनोंसे ज्ञात होता है कि आप सागरचन्द्रसूरि शाखा के वा० साधुचन्द्र के शिष्य कुलतिलकजीके शिष्य थे । आप स्वयं अच्छे कवि थे। आपके रचित स्तवनादि बहुतसे मिलते हैं। सं० १६०६ में आपने उ० कनकतिलकादिके साथ कठिन क्रिया- उद्वार किया. था । आपके हेमसार आदि कई विद्वान् और कवि शिष्य थे, आपके द्वारा खरतर गच्छ में ७ वां गच्छ भेद हुआ । और आपके नामसे वह शाखा भावहर्षीय कहलाई । बालोतरेमें इस शाखाकी गद्दी अब भी विद्यमान है। आपके शाखाकी पट्ट परम्परा इस प्रकार
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