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________________ norani ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह की इतिश्री होनेसे उकता गया। और श्रावकोंको उन्हें अपने स्थान ले जानेको कहा । रूपा बोहरा उन्हें अपने घर लाया। नगरमें सर्वत्र हाहाकार मच गया। इस समय नाय (न्याय !) सागरजीने सूरिजीका अन्तिम समय ज्ञातकर उत्तराध्ययन आदि सूत्रोंका श्रवण कराके अनशन आराधना करवाई। श्रावकोंने यथाशक्ति चतुर्थ व्रत, हरित त्याग, १२ व्रतादि के यथाशक्ति नियम लिये । आचार्यजीने गच्छकी शिक्षा अपने शिष्य हीरसागरको देकर, सं० १७६४ बैशाख ६ कविवार सिद्धयोग के प्रथम प्रहरमें जिनेश्वरका ध्यान करते इस नश्वर देहका परित्यागकर (प्रायः ) देवके दिव्य रूपको धारण किया। श्रावकोंने उत्सवके साथ अन्त क्रिया की, और रूपा बोहरेने वहां स्तूप कराया। इसी तरह राजनगरके बहिरामपुरमें भी स्तूप बनवाया गया। हीरसागरके आग्रहसे कडुआमती शाह लाधाने सं० १७६५ के आश्विन शुक्ला ५ बृहस्पतिवारको राजनगरमें इस रासकी रचना की। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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