SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काव्योंका ऐतिहासिक सार बेगड़ खरतरशाखा ( पृ० ३१२ से ३१८ ) गुर्वावलीमें जिनलब्धिसूरि पट्टधर जिनचन्द्रसूरि तक क्रम एक समान ही है, जिनचन्द्रसूरिके पट्टापर भट्ठारक शाखाकी ओर जिनराजसूरि पट्टधर हुए। वे माल्हू गोत्रीय थे, इसीसे बेगड़ गच्छवाले उनकी परम्पराको माल्हूशाखा कहते है । उधर द्वितीय पट्टधर जिनेश्वरसूरि हुए, जो इस शाखाके आदि पुरुष हैं। जिनेश्वरसूरिजी आदिका विशेष परिचय गीतोंमें इस प्रकार है - जिनेश्वरसूरिजी छाजहड़ गोत्रीय झांझणके आप पुत्र थे, आपकी माताका नाम झबकु था, और बेगड़ विरुद्धसे आपकी प्रसिद्ध थी । मालू गोत्रीय गुरु भ्राता के मानको चूर्ण कर अपने गुरु श्री जिनचन्द्रसूरिका पाट आपने लिया । आपने वाराही त्रिरायको आराधना किया था और धरणेन्द्र भी आपके प्रत्यक्ष था, अणहिलवाडे (पाटण) में खानका परचा पूर्ण कर महाजन बन्द ( बन्दियों ) को छुड़ाया था । राजनगर में विहार कर महम्मद बादशाहको प्रतिबोध दिया था और उसने आपका पदस्थापना महोत्सव किया था । आपके भ्राताने ५०० घोड़ोंका (आपके दर्शनपर) दान किया और १ करोड़ द्रव्य व्यय किया था इससे महम्मद शाहने हर्षित हो " बेगड़ा " विरुद्ध प्रदान किया था, ( या उसने कहा आपके श्रावक भी बेगड़ और आप भी बेगड़ हैं ) । एक बार आप साचोर पधारे, बेगड़ और थूलग दोनों गोत्र परस्पर मिले, ( वहां ) राडद्रहसे लखमीसिंह मन्त्रोने सङ्घ सहित आकर गुरु श्री को वन्दन किया । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only ७१ www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy