SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काव्योंका ऐतिहासिक सार । ६६ शनिवारको मिले थे, सुरत्राणने आदरसहित नमनकर आपको अपने पास बिठाया, और उनके मृदु भाषणोंसे प्रसन्न होकर हाथी, घोड़े, राज, धन, देश ग्रामादि जो कुछ इच्छा हो, लेनेके लिये विनती करने लग्रा । पर साध्वाचारके विपरीत होनेसे आपने किसी भी वस्तुके लेनेसे इनकार कर दिया। आपके निरीहताकी सुलतानने बड़ी प्रशंसाकी और वस्त्रादिसे पूजा की । अपने हाथकी निशानी (मोहर छाप) वाला फरमान देकर नवीन वसति-उपाश्रय बनवा दिया और अपने पट्टहस्ति (जिसपर बादशाह स्वयं बैठता है) पर आरोहन कराके मीर मालिकोंसे साथ पोषध-शाला बड़े उत्सवके साथ पहुंचाया। वाजिन बाजते और युवतियांके नृत्य करते हुए बड़े उत्सवसे पूज्यश्री वसतीमें पधारे । पद्मावती देवीके सानिध्यसे आपकी धवल कीर्ति दशोदिश व्याप्त हो गई। आप बड़े चमत्कारी और प्रभावक आचार्य थे। आपके चमत्कारों में १ आकाशसे कुलह (टोपी-घड़ा) को ओघे (रजोहरण) के द्वारा नीचे लाना २ महिष (भैंस) के मुखसे वाद करना ३ पतिशाहके साथ बड़ (बट ) वृक्षको चलाना ४ शत्रुजयके रायण वृक्षसे दुग्ध बरसाना ५ दोरड़ेसे मुद्रिका प्रगट करना ६ जिन प्रतिमासे बचन बुलवाने आदि मुख्य हैं। आपके विषयमें स्वतन्त्र निबन्ध (ला० म० गांधी लिखित) प्रकाशित होनेवाला है उसे, और जैनस्तोत्र सन्दोह भा० २प्रस्तावना पृ०४४ से ५२ एवं ही० रसिक० सम्पादित ग्रन्थ देखना चाहिये । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy