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________________ खरतर गच्छ शाखायें जिनप्रभसूरि परम्परा (पृ० ११, १३, १४, ४१, ४२,) वीर-सुधर्म-जम्बू-प्रभव-शय्यंभद्र यशोभद्र-आर्यसंभूति-भद्रबाहु स्थूलिभद्र-आर्यमहागिरि-आर्यसुहस्ती-शांतिसूरि-हरिभद्रसूरि संडिल्लसूरि-आर्यसमुद्र,-आर्यमंगू-आर्यधर्म-भद्रगुप्त-वज्रस्वामी-आर्यरक्षित-आर्यनन्दि-आर्यनागहस्ति-रेवंत-खण्डिल-हिमवन्त नागार्जुन-गोविन्द-भूतदिन्न लोहदित्य-दूष्यसूरि-उमास्वातिवाचक-जिनभद्रसूरि-हरिभद्रसूरि-देवसरि-नेमिचन्द्रसूरि-उद्योतनसूरि-वर्द्धमानसूरि-जिनेश्वरसूरि-जिनचन्द्रसूरि-अभयदेवसुरि-जिनवल्लभसूरि-जिनदत्तसूरि- जिनचन्द्रसूरि-जिनपतिसूरि-जिनेश्वरसूरि-यहां तक तो अनुक्रम सादृश ही है। इसके पश्चात् जिनेश्वरसूरिके पट्टधर जिनसिंहसूरि-जिनप्रभसूरि जिनदेवसूरि-जिनमेरुसूरि (पृ०११) अनुक्रमसे उनके पट्टधर जिनहितसूरि तकका नाम आता है (पृ०४२) इनमें जिनप्रभसूरि जिनदेवसूरिका विशेष परिचय गीतोंमें इस प्रकार है : जिनप्रभस्मृरि जिनप्रभसूरिजीने महम्मद पतिशाहको दिल्लीमें अपने गुण समूहसे रंजित किया। ___ अट्ठाही, अष्टमी चतुर्थीको सम्राट उन्हें सभामें आमन्त्रित करते थे, कुतुबुद्दीन भी आपके दर्शनसे बड़े प्रसन्न हुए थे। पतिशाह महम्मद शाह आपसे दिल्ली में सं० १३८५ पौष शुक्ला ८ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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