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________________ ५८ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह भगवती सूत्रके गम्भीर रहस्योंको उद्घाटन करने लगे। आपके उपदेशसे माणिकलालजी दूढ़ियेने मूर्ति पूजा स्वीकार की, इतना हो नहीं उन्होंने नवीन चैत्य कराके गुरुश्रीके हाथसे प्रतिष्ठा भी करवाई। श्रीमद्ने शान्तिनाथ पोलके भूमिगृहमें सहस्त्रफणादि अनेकों बिम्बों की प्रतिष्ठा की, इन प्रतिष्ठादि कार्योंमें प्रचुर द्रव्य खर्च किया गया और जैन धर्मकी महती महिमा हुई। ____सं० १७७६ में आपने खम्भातमें चौमासा कर अनेक भव्योंको प्रतिबोध दिया। व्याख्यानमें आपने शत्रुञ्जय तीर्थकी महिमा बतलाई, इससे श्रावकोंने शत्रुजयपर कारखाना स्थापित कर नवीन चैत्य और जीर्णोद्धार करवाना आरम्भ किया। सं० १७८१-८२-८३ में कारीगरोंने वहां चित्रकारी आदिका बड़ा ही सुन्दर काम किया । ( वहांसे विहार कर) राजनगर आये, चातुर्मासके लिये सूरतकी विशेष आग्रहपूर्वक विनती होनेसे आप सूरत पधारे । सं० १७८५८६-८७ में पालीताने एवं शत्रुजंयमें वधुशाह कारित चैत्योंकी देवचन्द्रजीने प्रतिष्ठा की और पुनः राजनगर आकर सं० १७८८ का चतुर्मास वहां किया । इस समय वाचक दीपचंदजीके व्याधि उत्पन्न हुई और आषाढ़ शुक्ला २ को वे स्वर्ग सिधारे । तपागच्छीय विनयी विवेकविजयजीको आप विद्याध्ययन कराने लगे और उन्होंने भी आपकी वैयावच्च-सेवा-भक्ति कर गुरु-कृपा प्राप्त की। ___ अहमदाबादमें शाह आणन्दरामजी जो कि रतन भंडारीके अग्रेश्वरी थे, गुरुश्रीसे नित्य धर्म-चर्चा किया करते थे और गुरुश्रीके ज्ञानकी गरिमासे चमत्कृत हो उन्होंने रतन भंडारीके आगे आप Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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