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________________ ४६ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह साचौरमें आपका जन्म हुआ था । नवयौवनावस्थामें यु० जिनचन्द सूरिजी हस्तकमलसे आप दीक्षित हुए थे । श्री सकलचन्द्रजीके आप शिष्य थे और तर्क व्याकरण एवं जैनागमोंका उच्चतम अभ्यास कर (गीतार्थता - ) पांडित्य प्राप्त किया था । सम्राट अकबरको एक पद (राजा नो ददते सौख्यम्) चमत्कृत ८ लाख अर्थ बतलाकर के ( रञ्जित) किया था । विद्वद् समाज और श्री संघमें आपकी असाधारण ख्याति थी । लाहौर में जिनचन्द्र सूरिजीने आपको वाचक पद प्रदान किया था । आपके महत्वपूर्ण कार्यकलाप ये हैं: (१) जैसलमेरके रावल भीमको प्रसन्न कर मयणों द्वारा मारे जानेवाले सांडा - जीवोंको छुड़ाया था । (२) शीतपुर ( सिद्धपुर) में मखनूम महमद शेखको प्रतिबोध देकर पांच नदीके ( जलचर ) जीवों - विशेषतया गायोंकी रक्षाका पटह बजवानेका प्रशंसनीय कार्य किया था (३) मंडोवराधिपतिको रञ्जित कर मेडतेमें बाजे बजवाने द्वारा शासन प्रभावना की थी । (४) परोपकारार्थ अनेकों ग्रन्थों - भाषा काव्योंकी ( वृत्तियें, गीत, छन्द) प्रचुर प्रमाणमें रचना की थी । (५) गच्छके सभी मुनियोंको (गच्छ) पहिरामणी की थी । (६) सं० १६६१ में क्रिया - उद्धारकर कठिन साध्वाचार पालनका आदर्श उपस्थित किया था । (७) आपका शिष्य - परिवार बड़ा विशाल और विद्वान् था । वादी हर्षः नन्दन जसे आपके उद्भट विद्वान शिष्य थे । श्री जिनसिंह Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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