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काव्योंका ऐतिहासिक सार . सुशिष्य थे। आप बड़े विद्वान थे। सं० १६२५ मि० ५० १२ आगरेमें अकबर सभामें तपागच्छवालोंको पोषहकी चर्चामें निरुत्तर किया था और विद्वानोंने आपकी बड़ी प्रशंसाकी थी, संस्कृतमें आपका भाषण बड़ा मनोहर होता था।
सं० १६३२ माधव (वैशाख) शुक्ला १५ को जिनचन्द्र सूरिजीने. आपको उपाध्याय पद प्रदान किया था और अनेक स्थानों में विहार कर अनेक भव्यात्माओंको आपने सन्मार्गगामी बनाया था ।
सं० १६४६ में आपका शुभागमन जालोर हुआ, वहां माह कृष्ण पक्षमें आयुष्यकी अल्पताको ज्ञातकर अनशन उचारण पूर्वक आराधना की और चतुर्दशीको स्वर्ग सिधारे । आपके पुनीत गुणोंकी स्मृतिमें वहां स्तूप निर्माण कराया गया उसे अनेकानेक जन. समुदाय वन्दन करता है। ___ सं० १६२५ के शास्त्रार्थ विजयका विशेष वृतांत आपके सतीर्थं कनक सोम कृत जयतपदवेलिमें विस्तारसे है। सरल और विरोधी होनेसे इसका सार यहां नहीं दिया गया, जिज्ञासुओंको मूल वेलि पढ़ लेनी चाहिये। ___ आपके एवं आपके शिष्य प्रशिष्योंके कृतियोंकी सूची युक जिनचन्द्र सूरि ग्रन्थके पृ० १६२ में दी गयी है। आपकी परम्परामे कविवर धर्मवर्धन अच्छे कवि हो गये हैं, जिनका परिचय "राजस्थान" पत्र (वर्ष २ अंक २) में विस्तारसे दिया गया है।
महोपाध्याय समयसुन्दर
(पृ० १४६ से १४८) पोरवाड़ ज्ञातीय रूपशी शाहकी भार्या लीलादेकी कुक्षिसे
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