SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान होता है और इस प्रकार वे हमारे मानव वंश के आदिम पूर्वज बने' ।" आश्चर्य होता है कि जिस विज्ञान ने मानव-परम्परा के सृष्टि सम्बन्धी विचारों को अज्ञान व अन्धविश्वासमूलक बताया उसी विज्ञान ने उक्त प्रकार के प्रयोग-शून्य व केवल कल्पना-ग्राह्य विचारों को विज्ञान की कोटि में कैसे स्थान दिया ? कहने को तो कहा जाता है कि विकासवाद बहुत कुछ प्रयोग-सिद्ध है। विश्व के विभिन्न भागों में प्राप्त अवशेषों के द्वारा उसे प्रामाणिक बनाने के भी बहुत प्रयत्न किये गये हैं व बड़े बड़े ग्रन्थ लिखे गये हैं, तब भी यह किसी गम्भीर विचारक के हृदय को छूता नहीं है। सष्टि-विज्ञान व जीव-विज्ञान की बहुत सी बातें तो प्रत्यक्ष ऐसी ही हैं जिन्हें काल्पनिक मस्तिष्क की निराधार उड़ान के अतिरिक्त कुछ नहीं कहा जा सकता। उदाहरणार्थ-पथ्वी सर्य से टी, चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है तो अवश्य वह भी पृथ्वी से टूटा है। पृथ्वी पहले अवश्य सेम जैसी रही होगी। उसका नुकीला भाग टूट कर ही चन्द्रमा हुआ होगा। और जब प्रश्न आया बन्दर या वनमानुष से मनुष्य बना तो उसकी पूंछ कहाँ गायब हो गई, तो कल्पना की गई कि अवश्य मानवता की ओर अग्रसर होता हुआ चिम्पाजी (मानव जाति का निकटतम पूर्वज बन्दर) ज्यों-ज्यों वृक्षों को छोड़कर धरती पर बैठने का आदी होने लगा, पूंछ घिसते-घिसते खतम ही हो गई। अस्तु-तथा प्रकार के समाधानों पर प्रश्न उठाए जायँ तो प्रश्नों की परम्परा लम्बी होती जायेगी। दूसरी बात यह है कि विकासवाद अब वैज्ञानिक जगत् से अपने अन्तिम श्वास गिन रहा है। अनुमान व कल्पना की कच्ची भित्ति के सहारे खड़े विकासवाद के मूलभूत नियम एक-एक कर ढहते जा रहे हैं, क्योंकि विभिन्न' भूखण्डों से प्राप्त प्राचीनतम अवशेष अब विकासवाद के गवाह होकर नहीं चल रहे हैं। द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद आत्मवाद विरोधी वैज्ञानिक प्रणालियों में द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद भी एक है। इसे वैज्ञानिक भौतिकवाद भी कहा जाता है। 'डायलेक्टिकल मेटेरिये लिज्म' शब्द का हिन्दी अनुवाद द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद' है। द्वन्द्वात्मक का अर्थ-द्विसंवादात्मक पद्धति भी किया जा सकता है किन्तु प्रस्तुत व्यवहार में द्वंद्वात्मक का अर्थ-वाद (Thesis), प्रतिवाद (Antithesis) व संवाद (Synthesis) के रूप में किया जाता है। किसी ने एक बात कही यह वाद हुआ ; दूसरे ने उसका विरोध किया यह प्रतिवाद हुआ ; दो परस्पर विरोधी बातों से एक तीसरी बात तय पाई जाती है, वह संवाद हुआ । इन्द्वा १. मानव समाज पृ० १ । Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002599
Book TitleJain Darshan aur Adhunik Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1959
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy