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प्रात्म-अस्तित्व
स्मक भौतिकवाद के व्याख्याता अपने अभिमत तथ्य को निम्न प्रकार से उदाहृत . करते हैं
वाद--जीव भूत है। प्रतिवाद-जीव भूत नहीं, स्वतन्त्र चेतन तत्त्व है।
संवाद-जीव न भूत है, न स्वतन्त्र चेतन तत्त्व, वह भूत के गुणात्मक परिवर्तन से उत्पन्न एक नया तत्त्व है।
यह भाषण में द्वन्द्ववाद का अर्थ हुआ। प्रकृत क्षेत्र में द्वन्द्ववाद का अर्थ हैअपने भीतरी विरोधी स्वभावों के द्वन्द्व से प्रकृति का एक तीसरे रूप में विकसित होना जैसे—हाइड्रोजन के प्राणपीड़क तथा प्रॉक्सीजन के प्राणदायक तत्त्वों से तीसरे जल तत्त्व का निर्माण । अस्तु, उपर्युक्त विचारों की समीक्षा करने से पूर्व अच्छा होगा कि वैज्ञानिक भौतिकवाद की सुप्रसिद्ध त्रिपुटी भी कुछ तर्क की कसौटी पर कस ली जाये।
त्रिपुटी द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के अनुसार जगत् के परिवर्तन की व्याख्या जगत् से करना वैज्ञानिक भौतिकवाद का ध्येय है। वह परिवर्तन जिन अवस्थाओं से होकर गजरता है, वे सीढ़ियाँ वैज्ञानिक भौतिकवाद की त्रिपुटी हैं
(१) विरोधी समागम । - (२) गुणात्मक परिवर्तन ।
.. (३) प्रतिषेध का प्रतिषेध । __वस्तु के उदर में विरोधी प्रवृत्तियाँ जमा होती हैं। इससे परिवर्तन के लिये सबसे आवश्यक वस्तु गति पैदा होती है, फिर वाद व प्रतिवाद के संघर्ष से संवाद रूप में नया गुण पैदा होता है; यह गुणात्मक परिवर्तन है । पहले जो वाद था उसको भी उसकी पूर्वगामी कड़ी से मिलाने पर वह किसी का प्रतिषेध करने वाला संवाद था, अब गुणात्मक परिवर्तन जब उसका प्रतिषेध हुआ तो यह प्रतिषेध का प्रतिषेध हुअा है ।
कुछ लोग मानते हैं कि द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की देन संसार को हीगल ने दी और मार्स ने इसे सुव्यवस्थित रूप दिया । कुछ भी हो द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का सम्बन्ध अाज मार्क्स के साथ ही जुड़ा हुआ है और वह उसी का माना जाता है । मार्क्स ने अपने इस वाद को आत्मा व अणु तक ही सीमित नहीं रखा, किन्तु उसे राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक आदि जीवन के सभी प्रमुख पहलुओं पर और कसा । मार्क्सवादियों के कथनानुसार वहाँ वह खरा उतरा है । द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के पीछे रूस के लोग तो यहां तक पड़े कि कई डाक्टर भी यह दावा करने लगे कि उनकी चिकित्सा द्वन्द्वात्मक पद्धति के अनुसार होती है। खैर, कुछ भी हो हमें तो प्रस्तुत
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