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प्रात्म-अस्तित्व
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'तो क्या इन रूपादिकों से भिन्न कोई नागसेन है ?" "नहीं महाराज !"
"भन्ते मैं आप से पूछते-पूछते थक गया किन्तु नागसेन क्या है, इसका पता नहीं चलता । तो नागसेन क्या शब्द मात्र है। आखिर नागसेन है कौन ? आप झूठ बोलते हैं कि नागसेन कोई नहीं है।"
तब आयुष्मान् नागसेन ने राजा मिलिन्द से कहा- “महाराज ! आप क्षत्रिय बहुत ही सुकुमार हैं ! इस दुपहरी की तपी और गर्म बालू और कंकड़ भरी भूमि पर पैदल आये हैं या किसी सवारी पर ?”
"मैं पैदल नहीं पाया, रथ पर आया हूँ।"
"महाराज ! आप रथ पर आये तो मुझे बतायें कि आपका रथ कहाँ है, क्या ईषा (दण्ड) रथ है ?"
"नहीं भन्ते ।" "क्या अक्ष (धरे) रथ हैं ?" "नहीं भन्ते ।" "क्या चक्के रथ हैं ?" "नहीं भन्ते ।" "क्या रथ का पञ्जर, रथ की रस्सियाँ, लगाम, चाबुक रथ हैं ?" "नहीं भन्ते ।" "महाराज क्या ईषा (अक्ष) आदि सब एक साथ रथ हैं ?" "नहीं भन्ते ।" "महाराज क्या ईषा आदि से परे कहीं रथ है ?" 'नहीं भन्ते ।”
"महाराज मैं आप से पूछते-पूछते थक गया, परन्तु पता नहीं चला कि रथ कहाँ है, क्या रथ केवल शब्द मात्र है ? आखिर यह रथ क्या है, महाराज ! आप झूठ बोलते हैं कि रथ नहीं है ? महाराज सारे जम्बू द्वीप के आप सबसे बड़े राजा हैं । भला किसके डर से आप झूठ बोलते हैं ?"
तब राजा मिलिन्द ने आयुष्मान् नागसेन से कहा-"भन्ते मैं झूठ नहीं बोलता। ईषा आदि रथ के अवयवों के आधार पर केवल व्यवहार के लिए "रथ" ऐसा सब कहा जाता है।"
“महाराज ! बहुत ठीक । अापने जान लिया कि रथ क्या है । इसी तरह मेरे केश इत्यादि के आधार पर केवल व्यवहार के लिए 'नागसेन' ऐसा एक नाम कहा जाता है परन्तु परमार्थ में नागसेन ऐसा कोई पुरुष विद्यमान नहीं है।"
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