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जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान मृत्यु के बाद भी इस तथागत का कोई अस्तित्व है ?
बुद्ध--महाराज ! इसका उत्तर अव्यक्त है। राजा-तो क्या मृत्यु के पश्चात् इसका कोई अस्तित्व नहीं है ? बुद्ध-यह भी अव्यक्त है ।
राजा-तो क्या यह कहना चाहिये कि मृत्यु के पदचात् इस तथागत का अस्तित्व है भी और नहीं भी ?
बुद्ध—यह भी अव्यक्त है। राजा--ये अव्यक्त क्यों हैं ?
क्यों का उत्तर क्यों से ही देते हुए बुद्ध ने कहा--तुम्हारी राजसभा में रहने वाला कोई गणक समुद्र के जलकण और रेगिस्तान के धूलिकण गिन सकता है ?
राजा-नहीं। बुद्ध-क्यों ? क्यों का उत्तर क्यों से पाकर राजा ने संतोष किया।
मैं समझता हूँ इस प्रश्न से बौद्ध-दर्शन की आत्मा और पुनर्जन्म के प्रश्न और भी रहस्यमय बन जाते हैं। आवश्यक होगा कि एक अन्य उदाहरण के सहारे विषय को कुछ स्पष्ट कर दिया जाये । 'मिलिन्द प्रश्न' में भदन्त नागसेन ने राजा मिलिन्द को बुद्ध-सम्मत प्रात्म-रहस्य बहुत ही सरलता से समझाया है। राजा मिलिन्द पूछता है
"भदन्त ! आपके ब्रह्मचारी प्रापको नागसेन नाम से पुकारते हैं, तो यह नागसेन क्या है ? भन्ते क्या ये केश नागसेन हैं ?"
"नहीं महाराज !" "तो रोयें नागसेन हैं ?" "नहीं महाराज !"
"ये नख, दाँत, चमड़ा, मांस, स्नायु, हड्डी, मज्जा, वक्र, हृदय, यकृत्, वलोम, प्लीहा, फुस्फुस, अाँत, पतली आँत, पखाना, पित्त, कफ, पीव, लोहू, पसीना, मेद, अाँसू, चर्बी, लार, नेटा, लासिका, दिमाग नागसेन हैं ?"
"नहीं महाराज !"
"भन्ते तब क्या आपका रूप नागसेन है ?. . . . . 'वेदनायें नागसेन हैं ? संज्ञा . या विज्ञान नागसेन है ?"
"नहीं महाराज !" "भन्ते तो क्या रूप वेदना, संस्कार और विज्ञान सभी एक साथ नागसेन है ?" "नहीं महाराज !"
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