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________________ जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान और उबाल बिन्दु (Boiling Point) आदि का समुचित पता लगा लिया हैं । लोहा, शीशा आदि १५००° पर तरल मिलेंगे और इससे पूर्व ठोस । प्रकाश (Light) प्रकाश निरन्तर गतिशील है। प्रकाश मात्र चाहे वह दीपक का हो या सूर्य का १८६००० मील की गति से अपने केन्द्र के चारों ओर बढ़ता रहता है। वैज्ञानिकों ने ब्रह्माण्ड में घूमने वाले आकाशीय पिण्डों की गति, दूरी आदि को मापने के लिए प्रकाश किरण को ही अपना मान-दण्ड मान रक्खा है, क्योंकि उसकी गति सदा समान है। प्रकाश में पहले भार नहीं माना गया था किन्तु अब यह सिद्ध हो चुका है कि वह एक शक्ति का भेद होते हुए भी भारवान् है । वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाया है---प्रकाश, विद्युत् चुम्बकीय तत्त्व हैं और वह एक वर्ग मील क्षेत्र पर प्रति मिनट आधी छटाँक मात्रा में सूर्य से गिरता है। विद्युत् विद्युत् के दो रूप हैं-धन और ऋण । धन का आधार प्रोटोन और ऋण का आधार एलेक्ट्रोन है। इस आधार से विश्व का प्रत्येक पदार्थ विद्युन्मय है। आकाश की बिजली बादलों के टकराने से पैदा होती है, पर वह भी कोई इस विद्युत् से भिन्न नहीं। वैज्ञानिकों ने विद्युत् प्रकटन के अनगिन रास्ते निकाल दिए हैं और आज यह मनुष्य के जीवन व्यवहार का आवश्यक अंग बन गई है। परमाणु बम और उद्जन बम परमाणु बम और उद्जन बम भी पौद्गलिक शक्तियों के विचित्र परिणाम हैं । पहले यह माना गया कि परमाणु टूटता नहीं पर धीरे-धीरे यह माना जाने लगा, वह टूट तो सकता है । क्योंकि उस समय रेडियो-क्रिया वाले तत्त्वों का पता लग चुका था जो कि अपने आप अपना मौलिक परिवर्तन करते रहते हैं। धीरे-धीरे यह पता चला कि परमाणु के बीजाणुओं की इकाई में अपार शक्ति भरी पड़ी है । तब से वैज्ञानिकों का ध्यान इस ओर लगा और परिणामस्वरूप परमाणु बम का आविष्कार हुा । अब तक बनाए गए परमाणु बमों में केवल यूरेनियम् के परमाणुओं का विदीरण किया गया है । यूरेनियम् स्वयं रेडियो क्रिया तत्त्व है, इसलिए अन्य परमाणुनों की अपेक्षा इसका विदीरण सहज हुआ है। इसमें भी द्रव्य मात्रा के न्यूनाधिक से मुख्य दो भेद होते हैं; U.२३५, ७.२३८ । इन दोनों भेदों में U.२३५ ही महंगा तथा दुर्लभ है और यही परमाणु बम का उपादान सिद्ध हुआ। उद्जन बम की गति उल्टी है। परमाणु बम जहाँ विभाजन का परिणाम है, Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002599
Book TitleJain Darshan aur Adhunik Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1959
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size7 MB
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