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परमाणुवाद
५५ से या सरलता से बदला जा सकता है, इस विषय के सारे प्रयोग वैज्ञानिक चाहे न भी कर पाए हों, पर विज्ञान के क्षेत्र में मूल द्रव्य के परिवर्तन की बात अब केवल कल्पना की उड़ान नहीं रह गई है।
द्रव्य की तीन अवस्थाएँ प्रत्येक परमाणु धनात्मक और ऋणात्मक अणुओं से बना है। ऋणात्मक कण अपने पास आने वाले कणों को दूर फेंकते रहते हैं । इसके आधार से पदार्थ मात्र में फुलावट है। ठोस से ठोस पदार्थ में पदार्थ-मात्रा से अधिक शन्याकाश है। एक लम्बे-चौड़े हाथी के अणुओं को शून्यता-रहित कर एकीभूत किया जाए तो उस हाथी के शरीर का सारा द्रव्य मिल कर इतना सूक्ष्म हो जायेगा कि वह सूई के छिद्र से आसानी से निकल सकेगा। इसी शून्यता के तारतम्य से पदार्थ की तीन अवस्थाएँ बन जाती हैं; ठोस, तरल, और वाष्पीय । इस शून्यता का मूल हेतु यही है कि ऋणात्मक बिजली चीजों को फुलाकर रखती है; धनात्मक बिजली अपनी मर्यादा से अणुओं को निकट और दूर जाने देती है। हम ऐसा भी कह सकते हैं--प्रत्येक पदार्थ ठोस, तरल और वाष्पीय तीनों अवस्थानों में रह सकता है । पर यह निश्चित है, द्रव्य उक्त तीनों अवस्थाओं में से किसी में रहे; उसके भीतर के अणु सर्वदा गतिमान हैं। वाष्पीय पदार्थों में यह गति यहाँ तक बढ़ जाती है कि वहाँ अणुओं की उछल-कूद और धक्काधक्की के सिवाय और कुछ लगता ही नहीं । यह जाना गया है कि गैस के अणु एक सैकिण्ड में ६ अरब बार दूसरे अणुओं से टक्कर ले लेता है जब कि उनके बीच की दूरी एक इंच का तीस लाखवाँ हिस्सा है।
द्रव्य और शक्ति (Matter and Energy) द्रव्य की तरह विज्ञान के क्षेत्र में शक्ति का एक स्वतन्त्र अस्तित्व माना गया है। किन्तु आइन्स्टीन ने यह स्पष्ट कर दिया कि शक्ति (Energy) और द्रव्य (Matter) एक दूसरे से अत्यन्त भिन्न नहीं हैं। द्रव्य शक्ति में और शक्ति द्रव्य में परिवर्तित हो सकती है । विज्ञान के क्षेत्र में आइन्स्टीन का यह एक क्रान्तिकारी निर्णय रहा है । शक्ति के स्थूल रूप उष्णता, चुम्बक, विद्युत् एवं प्रकाश हैं।
ताप (Heat) . परमाणु में धनाणु और ऋणाणु, अणु में स्वयं परमाणु और अणुगुच्छकों में अणु निरन्तर गतिशील हैं। यही आन्तरिक गति जब बहुत बढ़ जाती है और सूक्ष्मकण परस्पर एक दूसरे से टक्कर लेते हुए इधर-उधर दौड़ते हैं तो वे ताप के रूप में दीखने लगते हैं । आधुनिक विज्ञान ने हर एक पदार्थ के पिघाल बिन्दु (Freezing Point)
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