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जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान रेडियो प्रिया एक पदार्थ स्वभाव है, जो प्रकृति के इस विशाल क्षेत्र में सहज भाव से कहीं-कहीं उपस्थित होता है। पुद्गल के रहस्यमय स्वभावों का यह एक अच्छा उदाहरण है । यूरेनियम्, रेडियम् आदि ८३ से ६२ एलेक्ट्रोन वाले कुछ तत्त्वों में रेडियो क्रिया स्वयं होते भी देखी जाती है। उद्जन बम, परमाणु बम आदि में आदि से होने वाला रेडियो किरण प्रसरण कृत्रिम प्रयोगों का परिणाम होता है । रेडियो क्रिया का अर्थ है सहज भाव से या कृत्रिम रूप से जब परमाणु के मूलभूत कण एलेक्ट्रोन और प्रोटोन अलग होते हैं तो बम फटने की तरह धड़ाके के साथ एक प्रकार की लौ निकलती है और प्रकाश की भांति वह पागे से आगे फैलती जाती है। इसी लौ के प्रसरण को रेडियो क्रिया (Radio-Activity) या किरण प्रसरण (Radiation) कहते हैं।
___ यरेनियम से, जो कि ६२ मौलिक तत्त्वों में अन्तिम है; निरन्तर तीन प्रकार की किरणें निकलती रहती है जिनके नाम क्रमशः अल्फा, बीटा और गामा हैं । यूरेनियम् का परमाणु इस प्रसरण में जब अल्फा किरण के तीन अंश खो देता है तब वह रेडियम के रूप में परिवर्तित हो जाता है। रेडियम स्वयं रेडियो क्रियात्मक तत्त्व है । उससे भी दिन रात तीन किरणें निकलती रहती हैं । जब वह अल्फा किरण के पाँच अंश (Particles) खो देता है तो वह स्वयं रेडियम् न रहकर शीशा हो जाता है । अल्फा, बीटा और गामा का स्वरूप एक स्वतन्त्र अवयव है । बीटा करण साधारण एलेक्ट्रोन है । अल्फा कण चार प्रोटोन, दो एलेक्ट्रोन है। गामा किरण एक सूक्ष्म तरंगोंवाली एक्सरे है। पर साधारण एक्सरे की तरंगें इंच का करोड़वाँ भाग होती है और गामा किरण दस खरबाँ भाग । तात्पर्य यह हुआ कि उक्त किरण प्रसरण से यूरेनियम् के एलेक्ट्रोन प्रोटोन घटकर रेडियम् की संख्या पर पहुँच जाते हैं और वह यूरेनियम् रेडियम् वन जाता है । वही संख्या जब शीशे के बराबर हो जाती है तो वह रेडियम् जैसी विचित्र स्वभाव वाली धातु शीशे के रूप में बदल जाती है । यह परिवर्तन अन्यान्य मौलिक तत्त्वों में भी प्रयोगों द्वारा लाया जा सकता है । सन् १६४१ में वैज्ञानिक बैंजामिन (Banjamin) ने पारे को सोने के रूप में परिवर्तित कर दिखाया। पारे के अणु का भार दो सौ अंश होता है । उसे एक अंश भार वाले विद्युत् प्रोटोन से विस्फोटित किया गया जिससे वह प्रोटोन पारे में घुल-मिल गया और उसका भार २०१ अंश हो गया। तब स्वतः उस लय अणु की मूल धूलि से एक अल्फा बिन्दु निकल भागा, जिसका भार चार अंश था। परिणामतः पारे का भार २०१ अंश से १६७ अंश का हो गया। १६७ अंश भार का ही तो सोना होता है।
सन् १९५३ में प्लेटिनम् को सोने में परिवर्तन करने की तो नाना प्रयोग शालाओं में सफलता मिल गई । कौनसा मौलिक द्रव्य किस मौलिक द्रव्य में कठिनता
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