________________
परमाणुवाद
चौथे बेरिलियम् आदि में क्रमशः एक-एक बढ़ते हुए अणु केन्द्रगत और कक्षागत हैं । सबसे अन्तिम तत्त्व यूरेनियम में ६२ प्रोटोन नाभिकण (Nucleus) में हैं और उतने ही एलेक्ट्रोन विभिन्न कक्षाओं में अपने केन्द्र की परिक्रमाएँ करते हैं। हाइड्रोजन परमाणु में एक ही एलेक्ट्रोन है, इसलिए कक्षा भी एक है। अन्य परमाणुओं में सारे प्रोटोन एकीभूत होकर नाभिकरण का रूप ले लेते हैं, पर एलेक्ट्रोन अनेकों टोलियों में अनेकों सुनिश्चित कक्षाएँ बनाकर घूमते हैं।
न्युट्रोन और पोजीटोन--प्रोटोन भी स्वयं अपने पाप में स्वतन्त्र कण न होकर न्युट्रोन और पोजीट्रोन का संयोगिक परिणाम है । पहले यह एलेक्ट्रोन की तरह स्वतन्त्र करण माना गया था, पर १६२० में रदरफोर्ड स्वयं सन्देहशील हो गया, क्योंकि उसकी समझ में यह आया-धन और ऋण बिजली वाले प्रोटोन और एलेक्ट्रोन इस ब्रह्माण्ड के उपादान नहीं हो सकते । इनके बीच में धन और ऋण बिजली से रहित कोई तटस्थ कण होना चाहिए । इसके १२ साल बाद सन् १९३२ में रदरफोर्ड के सहकारी चडविक ने रदरफोर्ड की कल्पना में साए करण को प्रोटोन के अन्दर ही खोज निकाला और उसका नाम न्युट्रोन दिया । न्युट्रोन का अर्थ है--न -- उभय अर्थात् न उसमें एलेक्ट्रोन की ऋणात्मक बिजली है और न प्रोटोन की धनात्मक । दूसरे शब्दों में हम इसे तटस्थ कण भी कह सकते हैं । इसी प्रकार के नाना अन्वेषणों में से पोजीट्रोन का पता चला जो बिजली की मात्रा तो प्रोटोन के समान ही रखता है और भूतमात्रा एलेक्ट्रोन के बराबर।
आधुनिक पदार्थ विज्ञान ब्रह्माण्ड का उपादान खोजने के लिए पहले अणुओं और अणु गुच्छकों में भटका, फिर परमाणुओं में और अब एलेक्ट्रोन, न्युट्रोन और पोजीट्रोन में भटकता है । वैज्ञानिकों को अब यह कहने का साहस नहीं हो रहा है कि हम ब्रह्माण्ड के सूक्ष्मतम उपादान पर पहुँच गए हैं। जब-जब उन्होंने ऐसा विश्वास किया तब-तब उनको अपना वह विश्वास बदल देना पड़ा-क्या पता एलेक्ट्रोन न्युट्रोन, पोजीट्रोन आदि सूक्ष्म कणों के भीतर फिर कोई सौर परिवार जैसा सृष्टि क्रम निकल जाए ?
रेडियो क्रिया तत्त्व (Radio-Activity) और द्रव्य परिवर्तन
रेडियो क्रियात्मक तत्त्वों की चर्चा आज संसार के एक छोर से दूसरे छोर तक फैल रही है। अमेरिका और रूस द्वारा किए जाने वाले उद्जन बमों के परीक्षणों से रेडियो क्रियात्मक अणु किस प्रकार सहस्रों मील दूर नभोमण्डल में छितर जाते हैं और उनका विध्वंसक परिणाम जनजीवन पर कैसा पड़ रहा है, यह आबाल प्रसिद्ध है।
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org