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जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान भी पदार्थ को अपनी ओर खींचे रखना और ऋण-विद्यत का कार्य है, पदार्थ को दूर फेंकना। इन दो विरोधी विद्युत् कणों का परिणाम हाइड्रोजन अणु है, पर दोनों प्रकार की विद्युत् सम मात्रा में होने से हाइड्रोजन का परमाणु न ऋणात्मक विद्युत्वाला है न धनात्मक; अपितु वह इन दोनों स्वभावों से तटस्थ है । एक ऋणाणु और धनाणु की इकाई रूप इस हाइड्रोजन परमाणु का व्यास -
२००,०००,०००
१६४
ܘܨ ܘ ܘ ܘ ܨ ܘ ܘ ܘܨ ܘ ܘ ܘܨ ܘ ܘ ܘܨ ܘ ܘ ܘܨ ܘ ܘ ܘܨ ܘ ܘ ܘܨ ܘ ܘ ?]
इंच है, और इसका तोल---- ग्राम है। उसी हाइड्रोजन परमाणु के ऋणाणु और धनाणु का स्वरूप निम्न प्रकार से है
#UTOT (Electron)
व्यास
-इंच
५००,०००,०००,०००,० गति-- १३०० मील प्रति सेकिण्ड । भार- हाइड्रोजन परमाणु के भार का ---वाँ भाग।
२०००
STATIOT (Proton) व्यास-लगभग ऋणाणु से १० गुना अधिक ।
भार- १००,०००,०००,°
०००,०००.०ग्राम
यह तो हाइड्रोजन परमाणु का एक सूक्ष्मतम परिचय हुया, जिसको हम इन शब्दों में दुहरा सकते हैं-एक प्रोटोन इसके केन्द्र में है। एक एलेक्ट्रोन प्रति सैकिण्ड १३०० मील की गति से निरन्तर इसकी प्रदक्षिणा कर रहा है और उन दोनों अणुओं की इकाई का व्यास केवल एक इंच का बीस करोड़वाँ हिस्सा है। इतना छोटा-सा परमाणु भी कितना पोला है, यह भी भौतिक-शास्त्र का एक बहुत बड़ा विस्मय है। प्रोटोन को हम यदि अपनी कल्पना से प्रांवले के बराबर मान लें और उसी अनुपात से यदि एलेक्ट्रोन और प्रोटोन के बीच की खाली जगह को देखें तो वह ६६६ गज २ फुट चौड़ी होगी।
अन्य परमाणु-मौलिक तत्त्वों में हाइड्रोजन के बाद दूसरा नम्बर हेलियम् का है। इसके केन्द्र में दो प्रोटोन हैं, और दो एलेक्ट्रोन । ये निरन्तर अपने नाभिकरण (Nucleus) की परिक्रमा करते हैं। इसी प्रकार तीसरे मौलिक तत्त्व लिथियम् और
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