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जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान उपादान कारण क्या है ? इस प्रकार के प्रश्नों से ही पाँच भूतों की कल्पना आई, ऐसा लगता है । भारतवर्ष में भी कुछ ऋषियों ने माना था-पृथ्वी जो अधिकांश वस्तुओं का उपादान कारण है जल से पैदा होती है, जल आग से और प्राग' हवा से । किसी ने जल को प्रथम माना । आकाश को आत्मा से पैदा हुना माना । इस प्रकार यनान में चार्वाक के समकालीन थेलस' ('Thales) ने जल को सृष्टि का मूल कारण माना । उनके शिष्य अनक्सिमन (Anaxinens) ने वायु का और हैराक्लिंतस ने आग को मूल कारण सिद्ध किया। इस प्रकार ईस्वी पूर्व सातवीं, आठवीं शताब्दी से ईसा की सतरहवीं शताब्दी तक चार या पाँच महाभूतों का बोलबाला था । भारतीय नास्तिका ने पहले आकाश को भी भूत माना था, किन्तु फिर उसे तर्क सिद्ध न समझ कर छोड़ दिया । फिर वे चार ही महाभूतों के उपासक रहे। ये पाँच भूत सारी सृष्टि के मूल कारण नहीं हैं इस बात का अन्त तब हुआ जब कि रसायन के क्षेत्र में लोहे या तांबे मे सोना बनाने की दौड़ लगी थी । सर्वप्रथम बोयल (Boyle) ने सन्देहवादी रसायनी नामक पुस्तक लिखी और थेलस के जमाने से माने गए भूतों के मूल तत्त्व होने से सन्देह प्रकट किया। उसका विश्वास था ये पाँच भूत मूल तत्त्व ही नहीं हैं । मूल तत्व तो इनसे अतिरिक्त और पदार्थ हैं। ये भूत तो उनके समिश्रण का परिणाम हैं । उस समय तक वायु में भार नहीं माना जाता था। बोयल ने पहले-पहल बताया कि उसमें भी भार है । उस समय तक वाय को अधिकांशतया मूल तत्त्व ही माना जाता था । विभिन्न स्वभाव की गैसों का आविष्कार उस समय तक हो गया था किन्तु वे सब वायु के ही प्रकार मानी जाने लगीं।
कार्बन डाइप्रॉक्साइड (Carbondioxide) का पता पहले-पहल इंग्लैंड निवासी ब्लैंक ने सन् १७५५ में लगाया । इसका नाम स्थिर वायु रक्खा । आज के मूल रासायनिक तत्त्वों में से ऑक्सीजन की खोज बस्टली ने की और दिखलाया कि प्राग को जलाने व प्राणधारी को श्वास लेने के लिए भी इसकी आवश्यकता है । हेन्द्रीकवेडिन्स ने पानी पर अन्वेषण किया और उसे ऑक्सीजन ओर हाईडोजन के सम्मि
१. एतरैयारण्यक २।३।५। २. ई० पूर्व० ६४०-५५० । ३. ई० पू० ५३५-४२५ । ४. १६६१ ईस्वी।
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