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________________ जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान बनने बिगड़ने में किसी व्यक्ति विशेष की अपेक्षा नहीं रहती । उसके उदाहरण हैं बादलों में चमकने वाली बिजली, उत्का, मेघ, इन्द्रधनुष प्रादि ।' बिजली क्या है ? इस विषय में बताया गया है-"स्निग्ध रूक्षत्व गुणनिमित्तो विद्युत्'---स्निग्ध और रूक्ष गुणवाले स्कन्धों के संयोग से बिजली पैदा होती है । उल्का क्या है ? इस विषय में अन्वेषण करते हुए वैज्ञानिकों ने एक बहुत बड़ा घटनात्मक इतिहास गढ़ डाला है । जैन विचार सरणि के अनुसार उल्का ताराओं का टूटना नहीं है और न उनकी पारस्परिक टक्कर का परिणाम है । वह तो केवल जो नाना पुद्गल स्कन्ध अाकाश में भरे पड़े हैं उनका ही संघर्ष जन्य परिणाम है । इसी प्रकार विविध अणुओं का संयौगिक परिणाम वार्दल इन्द्रधनुष आदि हैं। प्राधुनिक विज्ञान में परमाणु विज्ञान के क्षेत्र में निर्विवादतया माना जाता है कि परमाणुवाद यूनान की देन है। डेमोक्रेटस (Democritas) संसार का पहला व्यक्ति था जिसने कहा- यह संसार शू य आकाश और अदृश्य, अविभाज्य व अनन्त परमाणुओं की एक इकाई है। दृश्य और अदृश्य सारे संगठन परमाणुओं के संयोग और वियोग का ही परिणाम है।" डेमोक्रेटस यूनान का एक सुप्रसिद्ध दार्शनिक था जो ईस्वी पूर्व ४६० में जन्मा और ईस्वी पूर्व ३७० तक जीया । परमाणु सम्बन्धी इसकी धारणा को हम इस प्रकार जान सकते हैं (१) पदार्थ (Matter) संसार में एकाकार व्याप्त नहीं है अपितु विभक्त (Discrete) हैं। (२) समस्त पदार्थ पिण्ड ठोस परमाणुओं से बनें हैं । वे परमाणु विस्तृत प्राकाशान्तर से पृथक है । प्रत्येक परमाणु एक स्वतन्त्र इकाई है। (३) परमाणु अच्छेद्य, अभेद्य और अविनाशी हैं । वे पूर्ण हैं, ताजे (नये) हैं, जैसे कि ये संसार की आदि में थे। १. वैससिकः । तद्यथा-स्निग्ध रूक्षत्व गुण निमित्तो विद्य दुल्का जलधाराग्नीन्द्रधनुरादि विषयः । -सर्वार्थसिद्धि अ० ५ मूत्र २४ । 2. The world consists of empty space and an in inite number of indivisible invisibly small atoms and that the appearance and disappearance of bodies was due to the u:ion and seperation of atoms. --Cosmology Old and New, p. 6 3. Comprehensive Treatise on Inorganic and Theoritical Chemistry. -J. W. Mellor Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002599
Book TitleJain Darshan aur Adhunik Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1959
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size7 MB
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