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जैन दर्शन और प्राधुनिक विज्ञान जैसे---त्रिकोण, चतुष्कोण, पायतन, परिमण्डल आदि । इनके अतिरिक्त जो अनियत प्राकार हैं उन्हें अनित्थंस्थ कहा जाता है, जैसे-वार्दल प्रादि की प्राकृतियाँ ।
पुद्गल विभाजन के प्रकार पुद्गल-द्रव्य का विभाजन पाँच प्रकार से किया गया है-- उत्कर, चूर्ग, खण्ड, प्रतर और अनुतटिका ।।
(१) उत्कर----मंग की फली का टूटना । (२) चूर्ण---गेहूँ आदि का प्राटा। (३) खण्ड---पत्थर के टुकड़े । (४) प्रतर-अभ्रक के दल । (५) अनुतटिका-तालाब की दरारें।
पुद्गल के चार गुरण पद्गल स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण स्वभाव वाला होता है । भगवती सूत्र में यही बात अधिक स्पष्टता से बताई गई है । वहाँ लिखा गया है-'पुद्गल पाँच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और पाठ स्पर्श से युक्त होता है ।" जैन शास्त्रों के अनुसार वर्ण मात्र पाँच" प्रकार का होता है- 'नील, पीत, शुक्ल, कृष्ण और लोहित' । रस पाँच प्रकार का है--- तिक्त, कटुक, ग्राम्ल, मधुर और कषाय । गन्ध दो प्रकार का होता है—'सुगन्ध और दुर्गन्ध' । स्पर्श आठ प्रकार का होता है-'मृदु, कठिन, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष ।'
१. वृत्तव्यस्र चतुरस्रायतनपरिमण्डलादित्थम् । ---तत्वार्थ राजवार्तिक अ० ५।२४ । २. अनियताकारं अनित्थंस्थम् ।
श्री जैन सिद्धान्त दीपिका प्रकाश १ सूत्र १२ की टीका । ३. स च पंचधा उत्करः, चूर्णः, खण्ड :, प्रतरः, अनुतटिका ।
— श्री जैन सिद्धान्त दीपिका प्रकाशं १ सूत्र १२ की टीका। ४. पोग्गले पंचवण्णे, पंच से, दुगन्धे, अट्ठफासे पण्णत्ते ।
- व्याख्या प्रज्ञप्ति श० १२ उ० ५ । ५. नील, पीत, शुक्ल, कृष्ण, लोहित भेदात् । -तत्वार्थ राजवार्तिक ५।२३।१० । ६. तिक्त, कटु काम्ल, मधुर, कषाया रस प्रकाराः ।
-तत्वार्थ राजवर्तिक ५।२३।८ । ७. गन्धः सुरभिरसुरभिश्च ।। - तत्वार्थ राजवर्तिक ५।२३।६ । ८. मृदु, कठिन, गुरु, लघु, शीतोष्ण, स्निग्ध, रूक्ष, स्पर्श भेदाः ।
-तत्वार्थ राजवार्तिक २३।७।५ ।
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