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परमाणवाद
হাত
प्रायोगिक
वैस्रसिक
भाषात्मक
प्रभाषात्मक
तत वितत घन सषिर प्रकारान्तर से शब्द के जीव शब्द, अजीव शब्द और मिश्र शब्द ये तीन भेद' भी किए जाते है।
शब्द की गति का वर्णन करते हुए शास्त्रकारों ने बताया-तीव्र प्रेरणा प्राप्त शब्द कुछ एक क्षणों में सारे ब्रह्माण्ड को पारकर उसके अन्त भाग तक पहुँच सकता है।
अन्धकार और प्रकाश
कृष्ण वर्ण बहुल पुद्गल का जो परिणाम विशेष है वह अन्धकार है। सूर्य, दीप आदि का उष्ण प्रकाश पातप है। प्रतिबिम्ब रूप पुद्गल परिणाम छाया है। चन्द्रादिक का अनुष्रण प्रकाश उद्योत है और मरिण आदि की किरण-पुंज प्रभा है।
१. अथवा जीवाजीव मिश्र भेदात् वेधा ।
___ ---जैन सिद्धान्त दीपिका प्रकाश १ सूत्र १२ की टीका। २. जीवेणं भन्ते जाइं दवाइं भासत्ताई गहियाहं निस्सरन्ति ताई किं भिण्णाई निस्सरन्ति अभिण्णाई निस्सरन्ति ? गोयमा ! भिण्णाइं वि निस्सरन्ति अभिण्णाई वि निस्सरन्ति ! तत्थत्णं जाइं दवाई भिगाइ निस्सरन्ति ताई अतगुण परि बुडिढ़ए परि बुड्ढमारगाई लोयतं फुसंति । जाई अभिण्णाई निम्सरन्ति ताई अंसखेज्जायो प्रोगाहणवग्गणाप्रो गंता भेदमावज्जति संखेज्जाइं जोयणाइंगंता विद्धंस मागच्छति ।
३. कृष्णवर्णबहुलः पुद्गलपरिणामविशेषः तमः । सूर्यादीनामुष्ण: प्रकाश प्रातपः । प्रतिबिम्ब रूप: पद्गलपरिणाम: छाया। चन्द्रादीनामनुष्णः प्रकाश उद्योतः । मण्यादीनां रश्मि: प्रभा। -श्री जैन सिद्धान्त दीपिका प्रकाश १ सूत्र १२ की टीका।
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