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जैन दर्शन और प्राधुनिक विज्ञान
शब्द
भिद्यमान अणुओं का ध्वनि रूप परिणाम शब्द ' है । वह अरूप या अभौतिक नहीं है, क्योंकि वह श्रोत्रेन्द्रिय का विषय है । जो कुछ भी इन्द्रिय ग्राह्य है वह स मूर्त (सरूप) है और पौद्गलिक है।
शब्द दो प्रकार का है—प्रायोगिक और वैन सिक ।
प्रायोगिक 3-जिसका उच्चारण प्रयत्नपूर्वक हो । वह दो प्रकार का है-- भाषात्मक और प्रभाषात्मक ।
भाषात्मक-अर्थ प्रतिपादकवारगी।
अभाषात्मक—जिस ध्वनि से किसी भाषा की अभिव्यक्ति न होती हो । यह चार प्रकार का है—तत, वितत, घन, और सुषिर। .
तत-तबला, पुष्कर, भेरी, दुर्दर आदि का शब्द । वितत"--वीणा ग्रादि का शब्द । ... घन.---ताल, घण्टा अादि का शब्द । सुषिर ---शंख, बांसुरी आदि का शब्द । वैस्रतिक-मेधादि जन्य स्वाभाविक शब्द को वैस्रसिक कहते हैं।
१. संहन्यमानानां भिद्यमानानां ध्वनिरूपः परिणामः शब्दः ।
-श्री जैन सिद्धान्त दीपिका।. २. प्रायोगिको वैनसिकश्च । ३. तत्रप्रयत्नजन्यः प्रायोगिक: भाषात्मकोऽभाषात्मको वा।
-श्री जैन सिद्धान्त दीपिका । ४. चर्मतनननिमित्तः पुष्कर-भरी-दुर्दरादि प्रभवस्ततः ।
-सर्वार्थसिद्धि अ० ५ सूत्र २४ । ५. तन्त्रीकृत वीणासुघोषादि समद्भवो विततः ।
-सर्वार्थसिद्धि अ० ५ सूत्र २४ । ६. ताल घंटा लालनाद्यभिघातजो घनः। ---सर्वार्थसिद्धि अ० ५ सूत्र २४ । ७ बंश-शंखादि निमित्तः सौशिरः । -~-सर्वार्थसिद्धि अ० ५ सूत्र २४ । ८. स्वभावजन्यो वैससिकः ।
-श्री जैन सिद्धान्त दीपिका ।
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