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जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान ही अन्त है, जो इन्द्रिय ग्राह्य नहीं है, जो अविभागी है ऐसे द्रव्य को परमाणु' जानना चाहिए । पञ्चास्तिकायसार में कुछ अन्य विशेषताओं से भी परमाणु को बताया है "परमाणु वह है—जिसमें एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस, दो स्पर्श हों। जो शब्द का कारण हो पर स्वयं शब्द न हो और स्कन्ध से अतिरिक्त हो।" परमाणु में चक्षुरिन्द्रिय, ध्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय के विषय, वर्ण, गन्ध, रस, और स्पर्श अंश रूप से मिलते हैं । केवल श्रोत्रेन्द्रिय का विषय शब्द गुण ही उसमें नहीं मिलता। क्योंकि शब्द स्कन्धों का ही ध्वनि रूप परिणाम है। परमाणु तो शब्द के केवल कारण भूत ही कहे जा सकते हैं। हालांकि किसी एक परमाणु के वर्ण गन्ध आदि इन्द्रिय के विषय नहीं बन सकते तो भी ये परमाणु के मूल गुण हैं ।
परमारग में वर्ण, गन्ध प्रादि परमाणु चार प्रकार का कहा गया है
(१) द्रव्य परमाणु-पुद्गल परमाणु Primary unit of mass of matter.
(२) क्षेत्र परमाणु-आकाश परमाणु Primary unit of space. (३) काल परमाणु-समय Primary unit of time. (४) भाव परमाणु —गुण Primary unit of strength or degree.
भाव परमाणु चार प्रकार का कहा गया है-"(१) वर्ण-गुरण (२) गन्ध-गुण (३) रस-गुण (४) स्पर्श-गुण । इनके उपभेद १६ हैं--(१) एक गुण कृष्ण (२) एक गुण नील (३) एक गुण रक्त (४) एक गुण पीत (५) एक गुण श्वेत (६) एक गुण सुगन्ध (७) एक गुण दुर्घन्ध (८) एक गुण तिक्त (६) एक गुण मधुर (१०) एक गुण कटुक (११) एक गुण कषाय (१२) एक गुण तीक्ष्ण (१३) एक गुण उष्ण (१४) एक गुण शीत (१५) एक गुण रूक्ष और (१६) एक गुण स्निग्ध ।" तात्पर्य यह हुआ कि जैन दर्शन में प्रतिपादित परमाणु वर्ण गन्ध, रस, स्पर्शवान् है—जैसा होना पुद्गल का स्वभाव ही है ।
१. अन्तादि अन्तमज्झं अन्ततेणेव इन्द्रियगेझं । ___ जं दव्य अविभागी तं परमाणु विजानीहि-सर्वार्थ सिद्धि टीका-सूत्र २५ । २-एक रस, वर्ण, गन्ध, द्विस्पर्श शब्दकारणमशब्दम् ।
स्कंधान्तरितं, द्रव्यं परमाणु तं विजानीहि ॥८॥ ३. चउविहे परमाणु पण्णते, तजंहा-द्रव्य परमाणु, खेत्त परमाणु, काल परमाणु, भाव परमाणु ।-भगवती शतक सूत्र २०१५।१२ ।
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