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परमाणुवाद
एक परमाणु में वर्ग, गन्ध, आदि की व्यवस्था इस प्रकार है-पूर्वोक्त पाँच प्रकार के वर्गों में से उसमें एक वणं, दो गन्धों में से एक गन्ध, पाँच रसों में से एक रस और चार स्पों में से दो स्पर्श होते हैं। रूक्ष या स्निग्ध से एक और शीत या उष्ण से एक। परमाणु की परिभाषा करते हुए टीकाकारों ने कहा है
कारण मेव तदन्त्यं सक्षमो नित्यश्च भवति परमाणः ।
एक रस गन्ध वर्णो द्विस्पर्शः कार्यलिंगश्च ॥ परमाणु स्कन्ध-पुद्गलों के निर्माण का अन्त्य कारण है अर्थात् वह वस्तु मात्र में उपादान है । वह सूक्षातम है, भूत में था, वर्तमान में है और भविष्य में रहेगा। वह एक रसयुक्त, एक गन्धयुक्त, एक वर्णयुक्त, दो स्पर्श युक्त है और कार्य लिंग है । कार्य-लिंग का तात्पर्य है; वह परमाणु रूप में आँखों व किसी पार्थिव साधन प्रसाधन से नहीं देखा जाता । परमाणुओं के सामूहिक क्रिया-कलाप से उसका अस्तित्व माना जाता है। उसके स्वरूप को तो केवल ज्ञानी तथा परम अवधिज्ञानी ही जानते हैं व देखते है।
परमारण प्रों में तारतम्य आधुनिक भौतिक विज्ञान ने ६२ प्रकार के मौलिक परमाणु (Primary elements) माने हैं। जैन दर्शन ने परमाणु-परमाणु के बीच ऐसी कोई भेद-रेखा नहीं दी है। कोई भी परमाणु कालान्तर से किसी भी परमाणु के सदृश विसदृश हो सकता है. जैसा कि नवीनतम विज्ञान भी अब मानने लग गया है । वर्ण गंध आदि गुणो से सर्वदा सब परमाणु सदृश नहीं रहते । आज एक परमाणु काला है, पीला है, नीला है। एक सुगन्ध स्वभाव का, एक दुर्गन्ध स्वभाव का, एक स्निग्ध स्वभाव का तो एक रूक्ष स्वभाव का, एक तिक्त रस का तो एक कटु रस का; इसलिए परमाणुओं के नाना
१. परमाणु पोग्गलेणं भन्ते ! कई वण्णे, कई गन्धे, कई रसे, कई फासे ? गोयमा ! एक वणे, एक गन्धे, एक रसे, दुफासे । जइ एग वण्णे-सिय कालग्रे, सिय णीलये, सिय लोहिये, सिय हालिये, सिय सुविकल्लये । जइ एक गन्ध-सिय सुब्भिगन्धे, सिय दुन्भिगन्धे । जइएग रसे-सिय तित्ते, सिय कड़वे, सियकषाये सिय अंबिले, सिय महुरे । जई दुफासे--सिय सीयेयणिद्धेय, सिय सीओयलुक्खेय, सिय उसिणेयरिणद्धेय, सिय उसिणे यलुक्खेन-भग० श० २० उ० ५।।
२. भगवती शतक १८ उ० ८ ।
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