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परमाणुवाद
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अर्थात् पूर्ण स्वभाव से पुत् और गलन स्वभाव से पुद्गल शब्द बना है । इसी प्रकार तत्त्वार्थ हरिवंश पुराण तथा सिद्धसेनीय तत्त्वार्थ टीका स्वभाव के कारण पदार्थ को पुद्गल बताया गया है । मूल जैन आगमों में पुद्गल के विषय में बताया गया है—उसमें पाँच वर्ण, पाँच रस, दो गंध आठ स्पर्श है : वह रूपी है, अजीव है, नित्य है, अवस्थित है और लोकद्रव्य है । वह समास में पाँच प्रकार का कहा गया है
" पूरणात् पुत् गलयतीति गल: ' : गल इन दो अवयवों के मेल से
राजवार्तिक, धवला ग्रन्थ ३, आदि ग्रन्थों में गलन मिलन
(१) द्रव्य अपेक्षा से अनन्त द्रव्य है ।
(२) क्षेत्र अपेक्षा से लोक प्रमाण है ।
(३) काल की अपेक्षा से कभी नास्ति नहीं होता तथा सदा नित्य है ।
(४) भाव अपेक्षा से वर्ण, रस, गंध, स्पर्श वाला है; तथा
(५) गुरण की अपेक्षा से ग्रहण गुरणवाला है ।
थोड़े से शब्दों में पुद्गल की परिभाषा इस प्रकार की जा सकती है— स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, स्वभाव वाला द्रव्य पुद्गल है । जैन दृष्टि से षड्द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य ही रूपी द्रव्य है । ऐसे भी कहा जा सकता है कि पुद्गल द्रव्य जो आँख से
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१. शब्द कल्पद्रुम कोष ।
२. पूरण गलनान्वर्थ संज्ञत्वात् पुद्गलाः: - अ० ५ सूत्र १–२४ । ३. छव्विह संठाणं बहु विहि देहेहि पूरदित्ति गलदित्ति पोग्गलो । ४. वर्ण, गन्ध, रस स्पर्शः पूरण गलनं च यत् । पुद्गलाः परमाणवः |. प्र० ५ सूत्र १ ।
कुर्वन्ति स्कन्धवत्तस्माद्
-सर्ग ७
५. पूरणाद् गलनाच्च पुद्गलाः ६. पंच, वण्णे, पंच रसे, दुगंधे, अठ फासे, रूवी, अजीवे, सास, प्रवठिए, लोक दव्वे । से समासत्र पंच विहे पण्णत्ते - दव्वप्रोणं पोग्गलत्थिकाए प्रणताहि दव्वाई, खेत लोयप्पमाणमेते, कालो न कायइ न आसी जाव- णिच्चे, भावप्रो वण्णमंत्ते, गंध-रस- फास-मंत्ते, गुणश्रो गहण गुणे ।
— भगवती शतक २, उद्देशक १० ।
७. स्पर्श, रस, गंध, वर्णवान् पुद्गलः
८. ( क ) अजीवः पुनः ज्ञेयः
-श्री जैन सिद्धान्त दीपिका - प्रकाश १ सूत्र ११ । पुद्गलः धर्मः अधर्मः आकाशम् ।
काल: पुद्गलः भूर्तः रूपादिगुणः प्रमूर्तयः शेषाः तु ।
-१५ संस्कृत छाया प्राकृत गाथा । (ख) पुद्गल मुत्तो रूपादि गुरगो । – वृहद् द्रव्य संग्रह गाथा १५ । (ग) रूपिणः पुद्गलाः – तत्वार्थ सूत्र प्र० ५ सूत्र ४ ।
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