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________________ परमाणुवाद २६ अर्थात् पूर्ण स्वभाव से पुत् और गलन स्वभाव से पुद्गल शब्द बना है । इसी प्रकार तत्त्वार्थ हरिवंश पुराण तथा सिद्धसेनीय तत्त्वार्थ टीका स्वभाव के कारण पदार्थ को पुद्गल बताया गया है । मूल जैन आगमों में पुद्गल के विषय में बताया गया है—उसमें पाँच वर्ण, पाँच रस, दो गंध आठ स्पर्श है : वह रूपी है, अजीव है, नित्य है, अवस्थित है और लोकद्रव्य है । वह समास में पाँच प्रकार का कहा गया है " पूरणात् पुत् गलयतीति गल: ' : गल इन दो अवयवों के मेल से राजवार्तिक, धवला ग्रन्थ ३, आदि ग्रन्थों में गलन मिलन (१) द्रव्य अपेक्षा से अनन्त द्रव्य है । (२) क्षेत्र अपेक्षा से लोक प्रमाण है । (३) काल की अपेक्षा से कभी नास्ति नहीं होता तथा सदा नित्य है । (४) भाव अपेक्षा से वर्ण, रस, गंध, स्पर्श वाला है; तथा (५) गुरण की अपेक्षा से ग्रहण गुरणवाला है । थोड़े से शब्दों में पुद्गल की परिभाषा इस प्रकार की जा सकती है— स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, स्वभाव वाला द्रव्य पुद्गल है । जैन दृष्टि से षड्द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य ही रूपी द्रव्य है । ऐसे भी कहा जा सकता है कि पुद्गल द्रव्य जो आँख से . १. शब्द कल्पद्रुम कोष । २. पूरण गलनान्वर्थ संज्ञत्वात् पुद्गलाः: - अ० ५ सूत्र १–२४ । ३. छव्विह संठाणं बहु विहि देहेहि पूरदित्ति गलदित्ति पोग्गलो । ४. वर्ण, गन्ध, रस स्पर्शः पूरण गलनं च यत् । पुद्गलाः परमाणवः |. प्र० ५ सूत्र १ । कुर्वन्ति स्कन्धवत्तस्माद् -सर्ग ७ ५. पूरणाद् गलनाच्च पुद्गलाः ६. पंच, वण्णे, पंच रसे, दुगंधे, अठ फासे, रूवी, अजीवे, सास, प्रवठिए, लोक दव्वे । से समासत्र पंच विहे पण्णत्ते - दव्वप्रोणं पोग्गलत्थिकाए प्रणताहि दव्वाई, खेत लोयप्पमाणमेते, कालो न कायइ न आसी जाव- णिच्चे, भावप्रो वण्णमंत्ते, गंध-रस- फास-मंत्ते, गुणश्रो गहण गुणे । — भगवती शतक २, उद्देशक १० । ७. स्पर्श, रस, गंध, वर्णवान् पुद्गलः ८. ( क ) अजीवः पुनः ज्ञेयः -श्री जैन सिद्धान्त दीपिका - प्रकाश १ सूत्र ११ । पुद्गलः धर्मः अधर्मः आकाशम् । काल: पुद्गलः भूर्तः रूपादिगुणः प्रमूर्तयः शेषाः तु । -१५ संस्कृत छाया प्राकृत गाथा । (ख) पुद्गल मुत्तो रूपादि गुरगो । – वृहद् द्रव्य संग्रह गाथा १५ । (ग) रूपिणः पुद्गलाः – तत्वार्थ सूत्र प्र० ५ सूत्र ४ । Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002599
Book TitleJain Darshan aur Adhunik Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1959
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size7 MB
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