________________
२८
जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान
जैन धर्म सदैव मौजूद ठहरता है। इस प्रकार परमाणुवाद का अस्तित्व जैन दर्शन के साथ बहुत प्राचीन हो जाता है। इतने दिन इतिहास के क्षेत्र में २४वें तीर्थकर भगवान श्री महावीर का ही परिचय था, किन्तु अब तो उनसे पूर्व के तेवीसवें तीर्थंकर भगवान श्री पार्श्वनाथ जो कि काशी राजा के एक राजकुमार थे; “पाश्चात्य विद्वानों द्वारा ऐतिहासिक पुरुषों की कोटि में मान लिए गए हैं ।" उनका काल ८४२ ई० पूर्व है जो कि डेमोक्रेट्स से ४२२ वर्ष पूर्वकालीन होते हैं । यह जैन शास्त्रों से भली-भाँति प्रामाणित है कि महावीर और पार्श्वनाथ का समस्त तात्त्विक विवेचन एक था।
वर्तमान जैन दर्शन का सम्बन्ध यदि हम भगवान् महावीर से भी लें तो उनका भी जीवन काल ईस्वी पूर्व ५६८ से प्रारम्भ होकर ५२६ तक चलता है जो कि परमाणवाद के तथाकथित आविष्कारक डेमोक्रेट्स से कुछ अधिक सौ वर्ष पूर्वकालिक हैं । अतः यह स्पष्ट हो जाता है कि परमाणु का आविष्कर्ता डेमोक्रेट्स ही था, यह मानना केवल ऐतिहासिक अज्ञात दशा का ही परिणाम है।
भगवान महावीर की वाणी में परमाणु और पुद्गल का विषय इस प्रकार प्रस्फुटित हुआ है। इस संसार में छः प्रकार के द्रव्य हैं ---
धर्मास्तिकाय—-Medium of motion for soul and matter. अधर्मास्तिकाय-Medium of rest for soul and matter. आकाशास्तिकाय-Space. पुद्गलास्तिकाय--Matter and energy. जीवास्तिकाय-Souls. काल-Time.
जैन दर्शन में लोक संस्थान के छहों मूलभूत द्रव्यों में पुद्गल को एक स्वतन्त्र द्रव्य माना है। पुद्गल शब्द जैन पारिभाषिक है। अन्य किसी भी दर्शन में इस शब्द का व्यवहार नहीं मिलता । बौद्ध दर्शन में इसका व्यवहार किया गया है पर नितान्त अन्य ही अर्थ में । जैन दर्शन का पुद्गल शब्द आधुनिक विज्ञान के Matter (पदार्थ) का पर्यायवाची है । पारिभाषिक होते हुए भी यह शब्द रूढ़ न होकर व्यौत्पत्तिक है ।
1. History of the world by Harms worth Vol. II 1198
२. (क)–गोयमा ! षड् दव्वा पण्णत्ता, तंजहा-धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, पुग्गलत्थिकाए, जीवत्थिकाए, अद्ध समयेय ।
(ख)-धम्मो, अधम्मो, अागासो, कालो, पुग्गल, जन्तो । ' एस लोगोत्ति पण्णत्तो जिणेहिं वर दंसिहि ।
-उत्तराध्ययन अ० २८ ।
___Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org