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स्याद्वाद और सापेक्षवाद
२. सम्मत-सत्य-जन व्यवहार से जो शब्द प्रयोग मान्य हो गया है । जैसेपंक से पैदा होने के कारण कमल को पंक कहा जाता है पर मेढक को नहीं; हालांकि वह भी पंक से पैदा होने वाला है । अतः इस विषय में कोई तर्क नहीं चल सकता कि उसे भी पंकज क्यों नहीं कहा जाए?
३. नाम-सत्य–किसी का नाम विद्यासागर है और वह जानता क, ख, ग भी नहीं । लोग उसे विद्यासागर कहते हैं तो भी असत्यवादी नहीं कहे जाते, क्योंकि उनका कहना नामसापेक्ष सत्य है । नाम केवल व्यक्ति के पहचान की कल्पना है। अतः यह नहीं देखा जाता कि उसके जीवन के साथ वह कितना यथार्थ है।।
४. स्थपाना-सत्य-किसी वस्तु के विषय में कल्पना कर लेना । जैसे १२ इंच का एक फीट, ३ फीट का १ गज । इतने तोलों का सेर है या इतने सेरों का मन है। यह स्थापना देश, काल की दृष्टि से भिन्न भिन्न होती है, पर अपनी अपनी अपेक्षा से जब तक व्यवहार्य है तब तक सब सत्य है । सत्य के इस भेद में अपेक्षावाद के उक्त माप. तोल गणित आदि के सारे विचार समा जाते हैं । वे सब सापेक्ष-सत्य है । एक मानदण्ड में सूक्ष्म दृष्टि से चाहे प्रतिक्षण कितना हो अन्तर पड़ता हो; पर जब तक व्यवहार्य है तब तक वह सत्य ही माना जाएगा । वास्तविक दृष्टि में सापेक्षवाद के अनुसार जिस प्रकार मानदण्ड आदि में प्रतिक्षरण परिवर्तन माना है; स्याद्वाद शास्त्र में उस परिवर्तन का विवेचन और भी गम्भीर व व्यापक मिलता है । स्याद्वाद के अनुसार वस्तु ही वह है जिसमें प्रतिक्षण नये स्वरूप की उत्पत्ति, प्राचीन स्वरूप का नाश और मौलिक स्वरूप की निश्चलता हो । प्रतिक्षण परिवर्तन के विषय में दोनों वादों का एक-सा सिद्धान्त एक दूसरे की सत्यता का पोषक है ।
५. रूप-सत्य–केवल रूप सापेक्ष कथन रूप-सत्य है । जैसे-नाट्यशाला में नाट्यकारों के लिए दर्शक कहा करते हैं-यह हरिश्चन्द्र है, यह रोहिताश्व है । रामलीला में कहा जाता है-यह राम है, यह सीता है ।
६. प्रतीति-सत्य-जैसे प्रतीति हो । दूसरे शब्दों में इसे हम सापेक्ष-सत्य भी कह सकते हैं । आम्र-फल की अपेक्षा आमलक छोटा है ऐसी प्रतीति होती है।
और गुजा की अपेक्षा वह बड़ा है, यह भी प्रतीति होती है । सापेक्षवाद का एक बड़ा विभाग इसी एक भेद में समा जाता है ।
७. व्यवहार-सत्य-लोक भाषा में सम्मत वाक्य व्यवहार सत्य है । जैसे बहुत बार पूछा जाता है यह सड़क कहाँ जाती है ? कोई उत्तर दे सकता है कि महाशय ! यह तो कहीं नहीं जाती यहीं पड़ी रहती है। बटोही थका-मांदा गाँव के पास पहुँचता है और कहता है, “अब तो गाँव आ गया है ।" पर कोई यह नहीं पूछता कि "तुम आये
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