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जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान गति में धर्म-द्रव्य की अनिवार्य अपेक्षा है। पटरी रेल को चलने के लिए प्रेरित नहीं करती फिर भी रेल के चलने में उसकी मूक या उदासीन सहायता रहती है। जीव और पुद्गल की गति में यही सम्बन्ध धर्म-द्रव्य का है।। ....... .
धर्म-द्रव्य को यदि संक्षेप में बताना चाहें तो इस प्रकार कह सकते हैं-धर्मद्रव्य पदार्थ मात्र की गति का निष्क्रिय माध्यम, वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श रहित अरूपी ; अपारमाणविक, अभौतिक, लोक व्याप्त, असंख्य-प्रदेशात्मक एक अखण्ड सत्ता रूप है।
ईथर उन्नीसवीं शताब्दी से पूर्व वैज्ञानिकों में ईथर का कोई स्थान नहीं था । इस . पोर वैज्ञानिकों की मनीषा नहीं दौड़ी थी। किन्तु यह कैसे हो, सृष्टि के अणु-अणु पर विचार करने वाला वर्ग उसकी रचना के इस अनिवार्य अंग से अपरिचित ही बना रहे। जब प्रश्न सामने आया—सूर्य, ग्रह और ताराओं के बीच जो इतना शून्य प्रदेश पड़ा है। प्रकाश किरणें कैसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाती हैं ? उनकी गति का माध्यम क्या है ? बिना माध्यम यह असम्भव माना गया कि प्रकाश जो एक भारवान्' वस्तु है, एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक पहुँच सके। इसी समस्या ने उन्हें किसी माध्यम को ढंढ़ निकालने के लिए विवश किया। परिणामस्वरूप ईथर की कल्पना की गई। माना गया ईथर तारों, ग्रहों और दूसरे आकाशीय पिण्डों की खाली जगह में ही नहीं भरा है, अपितु अत्यन्त सूक्ष्म परमाणु के रिक्त देश में भी व्याप्त है।
ईथर सम्बन्धी प्राथमिक धारणाओं में यह भी माना गया था-ईथर एक अभौतिक नहीं, भौतिक पदार्थ है। उसमें खास प्रकार और परिमाण की लचक और घनता है । उस लचक और घनता का परिमारण भी बताया जाता था किन्तु वह सन्दे. हास्पद ही था। अन्यान्य समस्याओं के कारण विद्वानों का ध्यान उस ओर नहीं जा सकता था।
. .. एक नाव नदी के इस पार पाती है । उसे खूटे से बाँध दिया जाता है । पतवार माँगे पर इस प्रकार डाल दिया जाता है कि उसकी थापी नाव से बाहर निकली रहती है। उससे जल की बूंदें टपक रही हैं। हर एक बूंद गिरकर पानी में एक वृत्त बनाती है, जिसकी परिधि आकार में बढ़ती हुई पानी पर अग्रसर होती है। जैसे एक बंद के बाद दूसरी बूंद टपकती है वैसे ही एक के बाद दूसरे वृत्त बनते हैं और वे बढ़ते हुए भी पहले वृत्त से छोटे तथा एक ही केन्द्र बिन्दु वाले समकेन्द्रक होते हैं।
१. विज्ञान पहले प्रकाश को भार शून्य वस्तु समझता था किन्तु इस युग तक वह उसे भारवान् पदार्थ मानने लगा है, जैसे कि जैन दर्शन सदा से मानता आया है।
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