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पृथ्वी : एक रहस्य पतला होकर एक ऐसा गोला बन गया जिसे वर्तमान वायुमण्डल का आदि जनक कह सकते हैं। वह बाहरी खोल या वायुमण्डल प्रथम तो कुहरे जैसा रहा । सूर्य की किरणें भी उसमें प्रवेश नहीं कर सकती थीं; पर धीरे-धीरे किरणों ने इसके वाष्पपक्ष को चीर कर पहली बार अन्दरूनी गोले का स्पर्श किया। किरणों के निरन्तर प्रवेश और आवागमन से वाष्प का हृदय पिघल गया और पृथ्वी पर एक भयंकर मानसूनी वातावरण उपस्थित हो गया। इन मानसूनी बादलों से जो वर्षा हुई उसकी तुलना प्रलय की वर्षा से ही की जा सकती है। यह स्थिति भी अधिक दिनों तक न रही । धीरे-धीरे इस पृथ्वी का तापमान समुचित हुआ तो वनस्पतियों ने अंकुर के रूप में पृथ्वी पर चरणन्यास किया। वनस्पतियों के बाद कुछ रेंगने वाले प्राणी आये। धीरे-धीरे जीवधारियों का विकास हुआ ; और बन्दर की परम्परा में आगे बढ़ने वाले चीपाजी बन्दर आदि जब वृक्षों के बदले धरती पर बैठने के आदी होने लगे तब उनके सन्तति-प्रवाह में इस मनुष्य नामधारी प्राणी का अवतार हुअा। पृथ्वी की आदि से इस विकास तक करोड़ों वर्ष लग चुके हैं ।
पृथ्वी का भविष्य भविष्य में क्या होने वाला है-इस विषय में भी विज्ञान चुप नहीं रह सका। उसका अभिमत है कि धीरे-धीरे पृथ्वी की परिक्रमा-गति भी मन्थर होती जा रही है । अब उसे अपनी धुरी की परिक्रमा में एक अहोरात्र अर्थात् २४ घण्टे लगते हैं; किन्तु पहले कभी वह तीन चार घण्टे में ही अपनी परिक्रमा समाप्त कर लेती थी। उस समय दो घण्टे के दिन और दो घण्टे की ही रातें हुमा करती थीं। एक लम्बी अवधि के पश्चात् पृथ्वी की गति इतनी मन्द हो जायेगी कि २४ घन्टे का अहोरात्र १४०० घन्टों का अहोरात्र हो जायेगा । अर्थात ७०० घण्टों का दिन और ७०० घण्टों की रात । इससे आगे क्रमशः परिक्रमा-गति और भी मन्थर होती जायेगी। गति के साथ पृथ्वी की उष्णता का भी ह्रास होता जायेगा। यहाँ जैसे पहले-पहल अति उष्णता के कारण जीवधारी नहीं रह सकते थे वहाँ आगे चलकर कल्पानातीत भयंकर शीत में पृथ्वी पर से प्राणी मात्र का लोप हो जायेगा। यह भी हो सकता है कि कभी यह सारी पृथ्वी अणु-अणु होकर अनन्त शून्य में विलीन हो जाये ।
- उत्पत्ति व विनाश पृथ्वी की उत्पत्ति व विनाश आदि के सम्बन्ध में उपर्युक्त विचार वैज्ञानिक जगत् में अब तक के अन्तिम विचारों में से हैं। वैसे तो इनसे पूर्व और भी नाना कल्पनाएँ वैज्ञानिकों के मस्तिष्क में आती रही हैं, पर व्यवस्थित रूप इन्हीं निरूपणों ने लिया है। यह पृथ्वी शेषनाग के मस्तिष्क पर रह रही है-उस युग से लेकर
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