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सापेक्षवाद के अनुसार भू-भ्रमण केवल सुविधावाद में स्थित है और हमेशा वह उत्तर में रहता है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार वह भी स्थिर है और पृथ्वी भी स्थिर है इसलिये ऐसा घटित होता है। पृथ्वी को भ्रमणशील मान लेने से ध्र वतारा को एक स्थान पर स्थित नहीं रहना चाहिये, यह बात एक बालक भी समझ सकता है। जब पृथ्वी के घूमने मात्र से स्थित सूर्य पूर्व से पश्चिम की ओर बढ़ता हझा हमेशा दष्टिगोचर होता है तो उत्तर की ओर रहा ध्रुवतारा निश्चल कैसे दीख सकता है ? आधुनिक भू-भ्रमणवादी इसका सामाधान करते हैं कि वह पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव (North pole) की समश्रेणी में स्थित है, इसलिये पथ्वी के पूर्व पश्चिम सम्बन्धी परिभ्रमण में पृथ्वीवासियों के लिये ध्रुव तारे की स्थिति समान ही रहेगी। यह समाधान पूर्ण नहीं माना जा सकता, क्योंकि पृथ्वी १००० मील प्रति घण्टा के हिसाब से अपनी धूरी पर घूम रही है तो लगभग १२ घण्टा के पश्चात् पृथ्वी का एक भाग बिल्कुल दूसरी ओर हो जायेगा। अर्थात् वह पृथ्वी के व्यास की दृष्टि से आठ हजार मील स्थानान्तरित होगा । ८००० मील की दूरी से हम ध्रुवतारा को देखें और आज के युग में जब कि बाल की खाल निकालने जैसी बारीकी को पकड़ने वाले साधन आविष्कृत हो चुके हैं, ध्रुवतारा ज्यों का त्यों दीखता रहे यह असम्भव है । दूसरी बात पृथ्वी केवल अपनी धूरी पर ही नहीं घूमती है । वह प्रति घण्टा ६६००० मील की गति से अपनी वार्षिक-सूर्य की परिक्रमा भी पूरी कर रही है। ऐसी स्थिति में जब कि सूर्य का व्यास ८६६००० मील व २६००००० मील के लगभग परिधि वाला है और ६३०००००० मील दूरी से पृथ्वी उसके चारों ओर अंडाकार परिभ्रमण करती है तो पृथ्वी का स्थानान्तरण एक वर्ष के विभिन्न महीनों में कितना विस्तृत हो जाता है, यह एक गणित सिद्ध विषय है। उस पर भी ध्रुवतारा पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के ऊपर ही ज्यों का त्यों खड़ा रहे और पृथ्वीवासियों को समग्र १२ महीनों में एक समान दीखता रहे यह नितान्त असम्भव है। वैज्ञानिक लोग इस विषय में केवल यही कह कर समाधान किया करते हैं कि ध्रुवतारा पृथ्वी से इतनी दूर है कि पृथ्वी कितनी ही बार स्थानान्तरित होती रहे वह समान रूप से ही दीखता रहेगा। यह समाधान केवल कह देने भर को ही समाधान लगता है ; वस्तुतः इसमें कोई यथार्थता प्रकट नहीं होती। पृथ्वी के साधारण दैनिक भ्रमण से पृथ्वीवासियों को प्रतिदिन सूर्य पूर्व से निकलता हुआ और पश्चिम में डूबता हुआ दीखता रहे और पृथ्वी के दैनिक, वार्षिक भ्रमण में भी ध्रुवतारा ज्यों का त्यों अडोल खड़ा रहे, यह कैसे हृदयंगम हो सकता है ?
जैसा कि बताया गया वैज्ञानिकों ने बहुत सारे प्रश्नों का समाधान वायुमण्डल (Atmosphere) की परिकल्पना करके किया और कहा कि पक्षी, वायुयान आदि वायुमण्डल के साथ एक नैसर्गिक गति करते रहते हैं, इसलिये वे अपने नियत स्थानों पर पूनः पहुँच जाते हैं। सर्वप्रथम तो वायुमण्डल का विचार ही प्रमाण से अधिक दिमाग
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