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सापेक्षवाद के अनुसार भू-भ्रमण केवल सुविधावाद
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गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त आदि निरूपणों ने भू- भ्रमण सिद्धान्त को पूरी तरह पुष्ट कर दिया । अर्थात् प्राचीनकाल के जो तर्क थे कि यदि पृथ्वी घूमती है तो आकाश में उड़ने वाले पक्षी घोंसलों पर कैसे श्रा जाते हैं, पृथ्वी पर की सारी वस्तुएँ वेग जनित प्रचण्ड वायु से नष्ट-भ्रष्ट क्यों नहीं हो जातीं, ध्वजादि उसी वेगजन्य वायु से एक ही दिशा में क्यों नहीं उड़तीं — प्रादि प्रश्नों में कुछ प्रश्नों का समाधान वायुमण्डल की परिकल्पना से किया गया । पक्षी, तीर, वायुयान आदि जो भी पदार्थ पृथ्वी से ऊपर उठ कर अपनी एक गति करते हैं; उसी समय उस वायुमण्डल के अन्तर्गत रहने से पृथ्वी के समान दूसरी गति उनकी सहज सम्पन्न हो रही है । जैसे रेल के डिब्बे में एक मक्खी उड़ रही है । डिब्बे के वायुमण्डल में इधर-उधर उड़ना उसकी अपनी एक गति है और रेल जिस गति (Speed) से दौड़ रही है, वह उसकी सहज गति है । इस प्रकार श्राकाश में फेंका गया तीर पुनः पृथ्वी पर ही प्राता है । समुद्र नदी आदि तरल पदार्थ पृथ्वी पर ठहर रहे हैं, इन सब में पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण ही हेतु है और पृथ्वी जो श्राकाश में निराधार रह रही है वह सूर्यादि अन्य ग्रहों के आकर्षण का ही परिणाम है । जब पृथ्वी समान रूप से गति करती हुई वर्ष भर में सूर्य का एक पूरा चक्कर लगाती है। तो ऋतुओं का परिवर्तन कैसे सम्भव है ? इसके उत्तर में यह कल्पना की गई कि वह अपनी धूरी पर २३३° डिग्री झुकी हुई चल रही है । इसी से उत्तरायण, दक्षिणायण व ऋतुपरिवर्तन सम्पन्न होते हैं । श्रस्तु क्रमशः यह सिद्धान्त विज्ञान के बढ़ते हुए प्रभाव के साथ राजमान्य हुआ और प्रत्येक पाठशाला का पाठ्य विषय बना । धीरे-धीरे पश्चिम की मर्यादा को लांघकर यह पूर्व में भी उसी प्रकार जन-जन की जानकारी में आया ।
स्फुट श्रन्वेषण
भू - भ्रमण का सिद्धान्त जब शासक लोगों द्वारा सब प्रकार से बढ़ावा पाने लगा, तब सूर्य-भ्रमण का सिद्धान्त लोगों के वैयक्तिक अन्वेषण का विषय बन गया । समय-समय पर व्यक्तिगत रायें जनता के सामने आती रही हैं । सन् १९४८ की मई २ को प्रकाशित "The Sunday News of India' नामक पत्र में हेनरीफॉस्टर द्वारा लिखे गये 'How Round is the Earth' शीर्षक लेख में बताया गया है - "पृथ्वी चपटी है इसे प्रमाणित करने के लिये कितने मनुष्यों ने वर्षों के वर्ष लगा दिये किन्तु थोड़ों ने विलियम् एडगल जितना उत्साह दिखाया होगा । एडगल ने ५० वर्षों तक संलग्न चेष्टा की । वे रात के समय श्राकाश का निरीक्षण करते थे । वे कभी बिछौने पर नहीं सोते थे । कुर्सी पर बैठे-बैठे ही सारी रातें बिताते थे । उन्होंने प्रपने बगीचे में एक लोहे का नल गाड़ रखा था जो ध्रुव तारे के सम्मुख था । उन्होंने अपने उत्साह भरे निरीक्षण के पश्चात् यह निर्णय दिया कि पृथ्वी थाली के समान चपटी है । इसके
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