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सिरिपउमप्पहसामिचरियं मह विजियकप्पपायवचिंतामणिकामधेणुमहिमाए । सीलमहिमाए रक्खसि ! निहयासा हवसु तो सहसा ॥७३१ ।। निम्महियकम्ममम्मो, जइ जिणधम्मो जयम्मि विप्फुरइ । पाविट्टि ! धिट्ठि ! रक्खसि ! सहसा तो हवस निहयासा ॥७३२॥ हालाहललहरी विव, अविरलविलसंतअमयलहरीहिं । तिस्सा चारुगिराहिं, उवसंता रक्खसी तत्तो ॥७३३॥ सा सीलपरिवारा नग्गोहतलम्मि वसइ तत्थेव । परओ पभायसमए, वच्चइ अवगणियतणखेया ॥७३४॥ सिद्धत्थपुरं नयरं, पत्ता आराममज्झभवणम्मि । सुहसुत्ता सच्चविया, वेसाए कामसेणाए ॥७३५॥ उप्पाडिय नियगेहं, नीया भणिया य कणस वेसत्तं । तत्तं गिण्हसु सुंदरि ! असारसंसारवत्थूणं ॥७३६। सा आह मए सीलं, सीलेयव्वं सया वि अकलंकं । कलसीलसेलवज्जं, कह वि ह न करेमि वेसत्तं ॥७३७॥ रुट्ठाए तीए एसा, भरिया जंजीर-संकलाईहिं । वक्कंते तम्मि दिणे, दिव्ववसा सा मया वेसा ॥७३८॥ अक्काहिं इमा अबला, बला वि तिस्सा पयम्मि अहिसित्ता । पावा न नियत्तते, पावफलं जाणमाणा वि ॥७३९॥ कणयद्धएण रन्नो, मयंकलेहाए असरिसरूवं ।। अक्कामहेण सोउं, पट्ठविओ तत्थ पडिहारो ॥७४०।। नऽन्ना गइ त्ति चिंतिय, चलिया ‘सहसा सहासणारूढा । मग्गम्मि हवइ बाला, गहिला महिलासिरो रयणं ॥७४१ ।। जीहाएऽपमाणेणं, जंपइ दारेइ चारुवत्थाणि ।। मयनाहिं पिव पंकं, लायइ चंगे वि निय अंगे ॥७४२॥ पणरवि गिहम्मि नीया, अत्ताए तद्दहेण अत्ताए । लउडेहिं हणइ सीसे, पत्ताणं मत्तवाईणं ॥७४३।।
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