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मयंकलेहाचरियं
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मं इक्कं चिय निहणसु, वरमिह मुंचेसु सव्ववंदाणि । मह तणुणा उवयारो, जइ हवइ न किं मए पत्तं ? ॥७१९॥ सोऊण तीए वयणं, सिरं धुणंतो विचिंतए एसो । अहह ! उवयारबद्धी, इमाइ महणिज्जचरियाए ॥२२०॥ परपाणपरित्ताणं, करंति गरुया निएहिं पाणेहिं । एमेव हहा मूढा, हणंति अम्हारिसा जीवे ॥७२१॥ इच्चाइ चिंतिऊणं, पसंसिऊणं मयंकलेहं तं । मुंचइ सह बंदेहि, पालइ पच्छाइ जीवदयं ॥७२२॥ बंदेहिं पहिठेहिं, सा ऊण कुलदेवय व्व संथविया । तिस्सा गिराए तत्तो, बंदे सव्वा गया सपरं ॥७२३॥ परओ गच्छंती सा, ललंतजीहेण छुहियसीहेण । दिट्ठा तोइ वहत्थं, तत्तो उद्धाइओ एसो ॥७२४॥ वियडविडंबियवयणं, गंजा पंजोवमाणनयणं तं । दुटुं मयंकलेहा, कंपियदेहा विचिंतेइ ॥७२४॥ का हुज्झ गई इण्हिं, हु नायं अत्थिसीलमाहप्पं । इय चिंतिय सीहं पड़, जंपइ उद्दामसद्देण ॥७२५॥ जय निय पई विमुत्तुं, अवरो मणसा वि पत्थिओ कहवि । तो सीह ! ममं कवलसु, अवह चिट्ठेसु नियठाणे ॥७२६॥ इय तग्गिराए सहसा, कोलाहिं कोलि व्व सो सीहो ॥ चिट्ठइ सा निरवाया, वच्चइ पुरओ अरजम्मि ॥७२७॥ गिरि-सरि-सरवर-काणणसहस्समइवाहिऊण निसिसमए । पत्ता निग्गोहतले, पिच्छइ सा रक्खसिं भीमं ॥७२८॥ तम-सम-सामल-देहा, फुरंततारा जणाण भयजणया । तिस्सा परिगिलणत्थं, सा पसरइ कालरत्ति व्व ॥७२९॥ अकलंकसीलरेहा, मयंकलेहा पयंपए तत्तो ।। जइ मह सायरचंदो, इक्को भत्ता इह भवम्मि ॥७३०॥
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