SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिरिपउमप्पहसामिचरियं पुणरवि अहिणवदुक्खा, मयंकले सहीए विरहम्मि । तह विलवइ जह सत्थो हवइ विहत्थो असेसो वि ॥६५६॥ दुहनिवहअंसहारिणि ! पियसहि ! तुमए वि दिव्वजोगेणं । हा पावपूरपिहिया, मयंकलेहा परिच्चत्ता ॥६५७॥ वसणगणलवणसायरपडिया सव्वेहिं चेव सयणेहिं । सविसेसमहं दुहिया, विहिया पियसहि ! तुम मुत्तुं ॥६५८॥ नियदुहनिवहं संपइ, साहिस्सं कस्स ? को ममं दुहियं । संठाविही ? मए सह, सहिस्सए कहस को दुक्खं ? ॥६५९॥ एवं तं विलवंति, संठाविय कित्तिएहिं दिवसेहिं । सत्थाहो संपत्तो, नंदणपुरपरिसरुद्देसे ॥६६०॥ लाडाहिवसत्तुंजयरनो मित्तेण विजयराएण ।। सत्थो लुटिय गहिओ, मालवदेसाउ पत्तो त्ति ॥६६१।। भयवसकंपिरदेहा, मयंकलेहा पलायणं काउं । एगागिणि निलुक्का, आरामासनदेवउले ॥६६२॥ जाए निसीहसमए, सीहनिनाएहिं जायसंतासा । कह कह वि अइदुहेणं, सुयं पसूया फुरियतेयं ॥६६३।। तं नियकलनहचंदं, चंदो दटुं व उदयमारूढो । अहवा सुपरिसजम्मे, के के उदयं न संपत्ता ? ॥६६४|| चंदस्स चंदिमाए, जायं दतृण हरिसिया एसा । सुहियाण वि दुहियाण वि, सुपुत्तजम्मो कुणइ हरिसं ॥६६५॥ उच्छंगसंगयं तं, बालं काऊण विलवए मुद्धा ।। हे वच्छ ! तज्झ जम्मे, किमहं काहामि गयपण्णा ? ॥६६६॥ जइ हुज्झ अज्ज जणओ, इह तुह तत्तो करिज्ज निरवज्जं । ऊसवनिवहं तं जो, हरेइ हिययं सुराणं पि ॥६६७|| तं देव देवकुमरायार ! इमाए मयंकलेहाए । निब्भग्गसेहराए, हा कहमयरम्मि अवयरिओ ? ॥६६८॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy